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अध्यात्म-दर्शन
उस व्यक्ति रा बोध मो योगी को गमलना या अवमानना , अनुगार आनाउतना अगुद्ध (अनिमंन) या शुद्ध (निर्मल)ोगा।
तात्य यह है कि जिस व्यक्ति का बांध जिनना-हिना नीट पणादो प्रार ने रहित होगा, उतना- उनना यह निर्मन, निमंनतर राना मायगा । न रष्टि से प्रबलतर या प्रबल कपायो में मुन्न हाने के पारण ग्नि मागभावो के मनिज्ञान और अनज्ञान विशुद्ध व निर्मन, ऐने बागमन, बहन रिड या गीतार्य महापुग्पो का गुदात्मभावना गे वागिन (नागिन) योग तीनमानवग ने परमात्मपथ दशन से निा आधारभूत है। __अथवा निश्नयनय की दृष्टि मे ना को अपनी मान्मा प्रवनर गा प्रश्न कपायो में मुक्त होगी, तभी उमका भयोपशम तीन होगा और उन नीट भयोपशमभाव ने वानित (युक्त) बोध मे जान पी विशुद्धना होगी, बुद्धि पर अनान, मोह, अभिमान, लालमा, गृहा, न्वार्थ आदि गा भावग्ण सम होगा और तभी मै न्वय परमात्मपथ= शुद्धात्मदशा को पथ का निर्णय पर नगा। अर्थात्-प्रवलकपायों मे रहित मेरी आत्मा शुद्धात्मभावरमणम्प परमात्मपय के प्रत्यक्षदर्शन में अग्रसर होगी।
साधारण प्राणी मामाग्कि वामनानी या परभावो की और इतना आसक्त होता है कि सहना उसमे आत्मविकान या स्वभावरमणता की भावना जागृत नहीं होती और उमे ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशमभाव उतना नहीं मिलता
और न ही तदनुरूप योग =(मयोग) मिलते है। इन दृष्टि में जिस व्यक्ति की जिननी-जितनी शुद्वात्मजान की क्षयोपशमभाव में होती है, उतने-उनने प्रबल व प्रबलनर नयोग (योग) मी उसे महज में मिलते जाते हैं । वानी क्षयोपगमभावो की न्यूनायिकता के अनुनार अनुकूल सयोगो को न्यूनाधिकता होनी है। ___ उदाहरणार्थ-कई माधको का क्षयोपशमभाव नोन होना है तो उन्हें प्रौट आर अनुभवी गुरुओ, तदनुकूल नाधनो, अनुकूल स्थान-नहतार-गत्मग आदि पता नयोग मिलता है, उनकी ब्रहण-धारणा-गत्ति भी तीदतर होती है, जचि कई साधको को तीन और कतिपय गधको को मन्द वा नन्दतः निननी है । न दृष्टिने जिन माधको की भोपामभावना नीटतम होगी उन्हे तदनुपून तीजतन मनोग और नीनतम ग्रन-धारणागक्ति मिलेगे और तदनुसार उनका बोध भी दीनतम क्षयोपशमभावना से गावित होगा। ऐसे व्यक्तियो का