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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश
प्राथमिक निवेदन सन् १६१८ मे, 'शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरण' नामसे मैने एक लेख-माला प्रारभ की थी और उस समय सबसे पहले एक छोटा-सा लेख सेठ चारुदत्तके उदाहरणको लेकर लिखा गया था, जो अक्तूबर सन् १६१८ के 'सत्योदय' में प्रकाशित हुआ और जिसमे जाति-बिरादरीके लोगोको पतित भाइयोंके प्रति अपने-अपने व्यवहार तथा बर्तावमे कुछ शिक्षा ग्रहण करनेकी प्रेरणा की गई थी। उसके बाद, वसुदेवजीके उदाहरणको लेकर, दूसरा लेख लिखा गया और उसमे विवाह-विषयपर कितना ही प्रकाश डाला गया । यह लेख सबसे पहले अप्रैल सन् १९१६ के 'सत्योदय' मे, और बादको सितम्बर सन् १६२० के 'जैनहितैषी' पत्रमे भी प्रकाशित हुआ था। इन्ही दोनो लेखोको आगे-पीछे सग्रह करके, ला० जौहरीमलजी जैन सर्राफ, दरीबाकला, देहलीने 'शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरण' नामसे एक पुस्तक प्रकाशित की और उसे विना मूल्य वितरण किया है। इस पुस्तकपर जैन अनाथाश्रम देहलीके प्रचारक प० मक्खनलालजीने एक समालोचना (1) लिखकर उसे पुस्तककी शकलमे प्रकाशित कराया है, और वे उसका जोरोके साथ प्रचार कर रहे है ।। प्रचारकजीकी वह समालोचना कितनी निःसार, निर्मूल, निर्हेतुक, बेतुकी और समालोचकके कर्त्तव्योसे गिरी हुई है, और उसके द्वारा कितना अधिक भ्रम फैलाने तथा सत्यपर पर्दा डालनेकी जघन्य चेष्टा की गई है, इन सब बातोको अच्छी तरहसे बतलाने