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योगसार टीका |
जीवस्स णत्थि वस्गो मा वभाणा व कड्या केई । यो अज्झणाणा ण बयअणुमायाणाणि ॥ ५७ ॥ जीवra for hई जायहणा ण बन्धठाणा वा ।
दाणा माया केई ॥ ५८ ॥ यो सिद्धि पट्टाणा जीवस्स या संकिलेश ठाणा वा । व विसोहिडाणा पो संगमलद्धिठाणा वा ॥ ९९ ॥ णे वय जीवट्टाणा ण गुणहाणा य आत्म जीवस्स । जे पदे सत्वे पुगलदवस परिणामा ॥ ६० ॥
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भावार्थ - निश्चयनय से इस जीवमें न कोई वर्ण है, न कोई गंध है, न रस है, न स्पर्श है, न कोई दिखनेवाला रूप है, न कोई शरीर है, न छः संस्थानों में से कोई संस्थान है, न छः संहननों में से कोई सहनन है, न जीवके राग है, न द्वेष है, न मोह है, न सत्तावन (५ मिध्यात्व + १२ अविरति + २५ कषाय + १२ योग ) आस्व हैं, न आठ कर्म हैं, न आहारक, तैजस, भाषा, मनोवगणा आदि नौ कर्म हैं, न जीवके कोई अविभाग प्रतिच्छेद शक्तिका समूह रूप वर्ण है, न वर्गसमूहरूप वर्गणा है, न वर्गणासहरू स्पर्द्धक है, न शुभाशुभ विकल्परूप अध्यात्मस्थान है, न सुख दुःख फलरूप अनुभागस्थान है. न जीवके कोई आत्मप्रदेश हलन चलनरूप व योगशक्तिके अशुद्ध परिणमनरूप योगस्थान है, न प्रकृति आदि चार बन्धके स्थान हैं, न कर्मों के उदयके स्थान हैं, न चौदह गति आदि मार्गणाओंके स्थान हैं, न कमी स्थितिबन्धके स्थान हैं, न अशुभ भावरूप संक्लेश, स्थान है, न शुभ भावरूप विशुद्धिके स्थान हैं, न संयम की वृद्धिरूप. संयमके स्थान हैं, न एकेन्द्रियादि चौदह जीव समास हैं, न मिथ्या