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योगसार टीका |
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कर सके वह जीव सेक्षी है जो इनको ग्रहण नहीं कर सके वह
असदी है।
(१४) आहार मार्गणा दो प्रकारउदयावणसरीरोदयेण तद्देहवयणचित्ताणं ।
णोकणं गणं आहारयं गाम ॥ ६६३ ॥
भावार्थ - उदय प्राप्त शरीरकर्मके उदयसे उस शरीर सम्बन्धी या भाषा या सन सम्बन्धी नो कर्मणाओं को जो ग्रहण कर वह आहारक है, जो कहा है।
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जेहिं रखित उदयादि संभवहि भावेहिं । जीवा ते गुण गिट्टिा सम्वदरसीहिं ॥ ८ ॥
भावार्थ - मोहनीय कर्मके उदय, उपशम, क्षयोपशम या क्षयके होनेपर संभव होनेवाले जिन भावोंसे जीत्र पहचाने जाने उनको सर्वज्ञने गुणस्थान कहा है। ये मोक्षमार्गको चौदह सीढियां हैं। मोह व योग सम्बंधसे होती हैं। उनको पार कर जीव सिद्ध होता. है । एक समय में एक जीवके एक गुणस्थान होता है ।
मिच्छा साग मिस्सो अभिसम्म यसविरदो य 1 विरदा व उतरी अपुच अणिय सुमो ॥ २ ॥ उवसंतखीणमोहो संजोगकेवलिजिणो अजोगी च । चउदस जीवसमासा कमेण सिद्धा यादवा ॥ १० ॥ भावार्थ - १ - मिध्यात्व २- सासादन, ३ - मित्र, ४- अविरक्त सम्यक्त, ५ - देशविरत, ६ - प्रमत्तविरत ७- अप्रमत्तविरत, ८अपूर्वकरण, ९ – अनिवृत्तिकरण, १० सूक्ष्मलोभ, ११ - उपशति मोह, १२- क्षीण मोह, १३ सयोग केवली जिन, १४ - अयोग केवली जिन । इन चौदह गुणस्थानको पार करके सिद्ध होते हैं ।