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योगसार टीका। [२८१ मथुनको व अपरिग्रह व तृष्णारहित भावसे परिग्रह संज्ञाको जीतना चाहिये | आत्माको उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दब, उत्तम आर्जय, उत्तम शौच उन चार गुण महित व ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य चार अनंत चतुष्टय सहित भ्याना चाहिये । ____ पवित्र होनेका उपाय पवित्रका ध्यान करना है । कषाय रहित व संज्ञाओमे रहित शुद्धात्मा मैं हूं व सर्व ही विश्वकी आस्मार्ग शुद्ध हैं, इस तरह भावना करनेसे स्वानुभवका लाभ होता है । स्वानुभवको ही धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान कहते हैं । ___कषाय ही कामें स्थिति व अनुभाग बंधक कारण हैं तय वीतरागभाव कर्मोको स्थिति ब अनुभागको मुखानेवाले हैं। जैसे अग्निकी तापसे अशुद्ध सुवर्ण शुद्ध होता है वैमे ही आत्मध्यानकी प्राप्तिके प्रतापसे अशुद्धात्मा पवित्र होजाता है। जैसे मलीन वस्त्र वस्त्रपर ध्यान लगानेसे मशाला रगड़नेपर साफ होना है बैंस ही यह कर्मोंमे मलीन आत्मा ज्ञान वैराग्यके मझालेके साथ ध्यान पूर्वक रगड़नेसे या स्वानुभवके अभ्यासमे शुद्ध होता है । ममुक्षुको निरन्तर आत्माके
अवनमें गण करना चाहिये । आत्मानुशासनमें कहा हैहृदयसमि यावन्निमले प्यत्यगाधे वसति खलु कमायग्राहचक्रं समंतात् । अमति गुणाणोऽयं तन्न तावद्विशतं समदमयमशेषैस्तान विजेतुं यतम्च ।२१३
भावार्थ-म्भीर व निर्मल मनके सरोवर के भीतर जब तक चारों तरफर्म कपाय पी मगरमच्छोंका वास है तब नक गुणोंक समूह शंका रहित होकर वहां नहीं ठहर सक्ने । इसलिये तृ समत्ताभाव, इंद्रिय दमन व विनयके द्वारा उन कषायोंके जीतनेका यन्न कर ।