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जाये तो यह आत्मा आता है।
. योगसार टीका |
गत
साहय है पैर में
यह आत्मा सत् पदार्थ है, कभी न जन्मा न कभी नाश होगा, स्वतः सिद्ध है, किसी ने उसको पैदा नहीं किया, न यह किसीको पैदा करता है। यह लोक अनादिकाल से है. छः द्रव्यों समूहको लोक कहते हैं । वे सब द्रव्य अनादि अनंत कालतक सदा ही बने रहते हैं । अनंत जीव हैं । अनंतानंत पुल हैं. असंख्यात कालागु हैं, एक धर्मास्तिकाय है, एक अधर्मास्तिकाय हैं, एक आकाश हैं । आत्मा - आत्मारूपसे सब समान हैं तथापि हुएक आत्माकी सत्ता दूसरी आत्माकी सत्तासे निराली हैं ।
अपने आत्माको एकाकी देखें, इसमें न आउ कर्मोका बंध हैं. इसमें रागादि विकारी भाव है, न कोई स्थल औहारिक व वैकिकि शरीर है । यह आत्मा शुद्ध स्फटिकमणिकं समान परम निर्मल है । ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, आदि गुणोंका सागर है। यह आत्मा न किसीका उपादान कारण है, न किसीका निमित्त कारण है । संसार दशामें आत्मा शरीर नामकर्मके उदयसे चंचल होकर मन बेसन, कायके द्वारा योगोंमें परिणमन करता है व कपायके उदयसे शुभ व अशुभ उपयोग होना है। ये योग व उपयोग ही लौकिक कार्योंमें निमित्त हैं । कुम्हार घड़ा पकाता है। मिट्टी घडेका उपादान कारण है, कुम्हारका मन, वचन, काय योग व अशुद्ध उपयोग तिमित्त कारण है। शुद्ध आत्मामें न योगोंका कार्य हैं न कोई शुभ या अशुभ उपयोग है। आत्मा स्वभावसे अकर्ता व अभोक्ता है । न तो परभावोंका कर्ता हैं न परभावोंका भोक्ता है । आत्मा स्वभावसे अपनी शुद्ध परिणतिका कर्ता है व सहज शुद्ध सुखका भोक्ता है । यह आत्मा परम निराकुल व समभायका धारी परम पवित्र निश्चल