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३४०] योगसार टीका।
भावार्थ-पहलाकोंके द्वार. सानेपोल पंच चारित्रले दूसरे चारित्र लेदोपस्थापनाका स्वरूप बताया है। सामायिक चारित्र पहला है उसको धारण करते हुए साधु निर्विकल्प समाधिमें व समभावमें लीन रहता है, वहां ग्रहण त्यागका विचार नहीं होसक्ता है। ___स्त्रानुभव होना या आत्मस्थ रहना ही सामायिक है | परंतु यह दशा एक अन्तर्मुहूतसे अधिक आत्मज्ञानी छमस्थके होना असम्भव है। उपयोग चन्चल हो जाता है तब अशुभ भावोंग बच. नेके लिये व्यवहार चारित्रका विकल्प किया जाता है । व्यवहार चारित्रके आलम्बन साधु फिर अन्तर्मुहूर्त पीछे आत्मलीन होजाता है । प्रमत्त भावमें भी अन्तर्मुहूर्तसे अधिक नहीं रहता है ।
सामायिकके छेद होजानेपर फिर सामायिकमें स्थिर होना ही छेदोपस्थापना चारित्र है। निश्चय चारित्र सामायिक है, उसमे उपयोग हटनेपर फिर जिस व्यवहार चारित्रक द्वारा पुनः निश्चय चारित्रमें आया जाये यह छेदोपस्थापना चारित्र हैं, यह सविकल्प हैं । निश्चय चारित्र निर्विकल्प है। इस भेदरूप चारित्रमें साधु अट्ठाईस मुल. गुणोंकी सम्हाल रखता है।
पांच अहिंसादि बत-संकल्पी व आरम्भी हिंसाको मन, वचन, काय, कृत, कारिन, अनुमोदनासे पूर्णपने त्याग व भावोंमें राग द्वैप रहित रहनेका व बाहरमें प्राणीमानकी रक्षाका उद्यम करना अहिंसा महावत है।
जिनवाणीमे विरोधरूप न हो ऐसा. वचन यथार्थ कहना । सत्य धर्मकी रक्षा करते हुए कहना सत्य महाव्रत है।
पर पीड़ाकारी, आरम्भकारी सर्व वचनोंसे विरक्त रहना, अहिंसा पोषक व वीतरागतावर्द्धक वचन कहना सल्प महावत है।
बिना परफे द्वारा दी हुई किसी भी वस्तुको बुद्धिपूर्वक प्रमाद :
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