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यांगसार टीका |
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आत्मीक तत्वका विचार करना यह निकट साधन हैं । आत्माके गुणोंकी भावना करते करते यकायक थिरता होती है। निश्चय नय मे अपने आत्माको ही शुद्ध देखें व जगतकी सबै आत्माओं को भी शुद्ध देखें। शेप पांच द्रव्योंको मूल स्वभाव में देखे। इस दृष्टि दीर्घ अभ्याससे राग द्वेष न रहेंगे, द्वेष भावकी मात्रा बढ़ती जायगी ।
व्यवहार नयके द्वारा देखने से पूजक पूज्य, बंध मोक्षकी कल्पना होती है । निश्चय नयसे आप ही पूज्य है, आप ही पूजक है, चंध मोक्षका विकल्प ही नहीं है। त्रिकाल शुद्ध आत्माका दर्शन निश्चय नय कराता है। निश्चय नयका विचार भी सविकल्प ध्यान है । साधककी निर्बलता से साधु हो या गृहस्थ हो जब उपयोग निश्चयनयके विवा रवि नहीं हो तो फिर व्यवहारनयसे पिंडस्थ, पदस्थ रूपस्थ ध्यानके द्वारा व पांच परमेष्ठी स्वरूपके मनन द्वारा ॐ अहे, ह्रीं श्रीं मंत्र द्वारा ध्यान करे ।
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कदाचित इसमें भी उपयोग न जमे तो अध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ें, स्तुति पढ़ें, भक्ति या वेदना करे, उपदेश देवे, ग्रंथ लिखे, साधु-सेवा करे, अशुभ भावोंसे बचने के लिये शुभ भावोंमें वर्तनाव व्यवहारधर्म के भेदों की साधना सच सविकल्प धर्मन्यान है । गृहस्थीका मन जत्र निश्चयन के विचार में न लगे तो वह देवपूजादि छः कर्मीका साधन करे । निष्काम भावसे जगत मात्रकी सेवा करे, तीर्थयात्रा करे, सर्व ही प्रकारके व्यवहार धर्मको करके उपयोगको अशुभसे बचाकर शुद्ध भावमें चढ़नेका प्रयत्न करें। निश्चय व व्यवहार धर्म दोनोंकी डोरीको हाथमें रखकर साधन करे। निश्चयधर्मको उपादान साधन व व्यवहारको निमित्त साधन जाने। जो कोई निर्वाणका लक्ष्य रखके सब सुखको भोगता हुआ आत्मानुभवका अभ्यास करे वह शीघ्र ही निर्वाणका लाभ करेगा |