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योगसार टीका ।
श्रद्धानाधिगमोंपेक्षा याः पुनः स्युः परात्मना । सम्यक्त्वज्ञानवृत्तात्मा स मार्गो व्यवहारतः ॥ ४ ॥ भावार्थ- मोक्षमार्ग निश्चय तथा व्यवहारसे दो प्रकारका है। निश्चय मार्ग साध्य है, व्यवहार साधन है। अपने ही शुद्ध आत्माका श्रद्धान ज्ञान व सूत्रे परसे उदासीन भावरूप उपेक्षा या स्व रूपमें - दीनता ऐसा निश्रय रत्नत्रय स्वरूप आत्माका शुद्ध भाव निश्चय मार्ग है । पद पदार्थोंकी अपेक्षा श्रद्धान ज्ञान व त्याग करना व्यवहार वय मोक्षमार्ग है | व्यवहारके सहारे किये।
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रत्नत्रयका स्वरूप |
दंसण जं पिच्छिइ बुह अव्या विमल महेतु । पुणे पुणे अप्पा मारियए सो चारित पवितु ॥ ८४ ॥ अन्वयार्थ -- ( अप्पा विमल महंतु ) यह आत्मा मलरहित शुद्ध व महान परमात्मा है । जे पिच्छियइ बुह दंसणु ) ऐसा जो श्रद्धान करना सो सम्यग्दर्शन है व ऐसा जानना सो ज्ञान है ( पुणु पुणु अप्पा सायिए सो चारिच पवितु ) कारवार उस आत्माकी भावना करनी सो पवित्र या निश्चय शुद्ध चारित्र है ।
भावार्थ - अपने आत्माका यथार्थ स्वरूप जानकर श्रद्धान करना चाहिये | यह आत्मा द्रव्य परिणमनशील है गुणोंका समूह है । गुणोंमें स्वभाव परिणमन होना द्रव्यका धर्म है। परिणमन शक्ति ही गुणोंकी समय पर्यायें होती हैं, व्यवहार से यह अपना आत्मा कर्म सहित मलीन दिखता है। कर्मोक संयोगसे चौदह गुण- स्थान व चौदह मागणारूप आत्माको अवस्थाएँ जो होती हैं वे आत्माका निज शुद्ध स्वभाव नहीं हैं। जब शुद्ध निश्चयनयसे जाना