Book Title: Yogasara Tika
Author(s): Yogindudev, Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 314
________________ योगसार टीका । . [३०५ (५) उपशम-शांत भाव सम्यक्तीके भीतर रहता है । शान. पूर्वक हरएक काम करता है | आत्मानुभक्के प्रतापमे सहज शांत भाव जागृत रहता है | एकदम क्रोधादिमें नहीं परिणमला है, विपरीत कारणोंपर कमौका उदय फल विचार लेता है । (६) भक्ति- सम्यक्ती जिनेन्द्रदेव, निथ गुरु, जिनवाणीको गाढ़ भक्ति रखता है । मनुति, बंदना, पुजा, स्वाध्याय किया करता है। उनको मोक्षका सहकारी जानना है। (5) वात्सल्य-साधी भाई 4 बहनोंपर धार्मिक प्रेम रखता है, धर्मभावसे उनकी सेवा करता है। (८) अनुकम्पा-प्राणी मात्रपर दयाभाव रखता है। मन, वचन, कायसे किसी प्राणीको कष्ट देना नहीं चाहता है | शक्तिको न छिपाकर प्राणीमात्रका हित करता है। किसी प्राणीके साथ अन्यायका व्यवहार नहीं करता है । ऐसा तत्वज्ञानी जीव दुर्गति लेजानेवारे पाप कर्मीको नहीं बांधना हैं | मिथ्यात्व गुणस्थानमें बंधनेवाली १६ सोलहका, अर्थात् १मिथ्यात्व, २-टुंडक संस्थान, ३-नपुंसक वेद, ४-असंप्राप्र सहनन, ५-एकेन्द्रिय, ६-स्थावर, ७-आनाप. ८-मूक्ष्म, ५-साधारण, १८अपर्याप्त, ११-ईन्द्रिय, १२-तेन्द्रिय, १३-चौन्द्रिय, १४-नरकगनि, १५-नरकगत्यानुपूर्वी, १६-नरक आयु का । तथा सासादन गुणस्थान तक बंधनेवाली २५ पनीसका अर्थात् ४ अनंतानुबंधी कपाय, ५ स्त्यालगृद्धि, ६ निद्रा निद्रा, ७ प्रचला प्रचला, ८ दुभंग, ९ दुम्बर, १० अनादेय, ११-१४ चार संस्थान न्यग्रोधादि, १५-१८ चार संहनन वनताराचादि, १९ अप्रशस्त विहायोगति, ५० स्त्रीवेद, २१ नीच गोत्र, २२ तिचगति, २३ सिर्यचगत्यानुपूर्वी, २४ तिर्यंच आयु. २५ उद्योत. की। इसतरह ४१

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