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योगसार टीका। धार्ग है, मायाके अभावसे उत्तम आजब गुण धारी है. असत्य ज्ञानक अभावरन उत्तम सत्य धर्म धती हैं। लोभक अभावसे उत्तम शौच गुण धारी है, असंयमके अभावम स्त्रम्.पमें रमणरूप उत्तम संग्रम गुण धारी है। मब उमलायका अभाव होनेसे आत्माका एक शुद्ध वीतराग भावसे तापना एक उत्तम गुण है 1 ग्रह आस्मा परम तपम्बी है, यह आत्मा अपनी शुद्ध परिणतिको या आत्मानंदकी आपके लिये दान करता है, यही इसका उत्तम त्याग धर्म है । इस के उत्तर आवि. मा है। इन
आत्माकं भीतर अन्य आत्माओंका, पुन्ले द्रव्यका, धर्म, अधर्म, काल, आकाशका अभाव है, यह भूण अपरिग्रहबान है. परम असंग है। यह आत्मा उत्तम ब्रह्मचार गुणका धारी है, निग्न्नर अपने ब्रह्मभावमें मगन रहनेवाला है | इसतरह दश लक्षणोंको बिचारे अथवा अपने आत्माको दश गुण सहित विचारे ।
यह आत्मा अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, नायिक सम्यक्त. क्षायिक चारित्र, अनंत दान, अनंत लाभ, अनंन भोग, अनंत उपभोग, अनंत बीय, अनंत सुख, इन दश विशेष गुगीका धारी परमात्मा स्वरूप है । यह सर्वज्ञ व सर्वदर्शी होकर भी आत्मज्ञ व आत्मदी है | यह यकी अपेक्षा सर्वज्ञ सर्वदशी कहलाता है। शुद्ध सभ्यग्दशनका धारी होकर निरन्तर आत्म प्रतीतिमें वर्तमान है । सर्व कषाय भावकि अभाबसे परम वीनराग यथाख्यात चारित्रसे विभूषित है | आपके आनंदको आपको देता है, अनंन दान करनेवाला है, निरंतर स्वात्मानंदका लाभ करना ही अनंत लाभ है | स्वात्मानंदका ही निरंतर भोग है अपने आत्माका ही बार बार उपभोग है | गुणोंक भीतर परिणमन करते हुए कभी भी खेद नहीं पाता यही अनंत वीर्य है । ज्ञानावरण,. दर्शनावरण, मोह व अन्तराय कर्मोस रहित होकर अनंतसुखका समुद्र है।.