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१२० योगसार टीका ।
आत्मा असंख्यातप्रदेशी लोकप्रमाण है। सुद्धपएसह पूरियउ लोयायासपमाणु । सो अप्पा अणुदिण मुणहु पावहु लहु णिव्याशु ॥२३॥
अन्वयार्थ-(लोयायासपमाणु सुद्धपएसह पूरियर) जो लोकाकाशप्रमाण असंख्यात शुद्ध प्रदेशोसे पूर्ण है (सो अप्पा) यही यह अपना आत्मा है ( अणुदिण मुणह ) रातदिन ऐसा ही मनन करो व अनुभव करो (णिन्नाण ला पावह) निर्वाण शीघ्र ही प्राप्त करो।
भावार्थ-पहले वारंवार कहा है कि आत्माका दर्शन निर्वाणका मार्ग है। यहां बताया है कि आत्माका आकार लोकाकाशप्रमाण असंख्यात प्रदेशी है। कोई भी वस्तु जो अपनी सत्ता रखती हैं कुछ न कुछ आकार अवश्य रखती है। आकार विना वस्तु अवस्तु है । हरएक द्रव्यमें छः सामान्य गुण पाए जाते हैं
(१) अस्तित्व-वस्तुका सदा ही बना रहना । हरएक वस्तु सदास है, उत्पाद व्यय ध्रौव्यरूप सत्पनेको लिये हुए हैं। वे पर्यायके उपजने विनशनेकी अपेक्षा उत्पाद व्यय व बने रहनेकी अपेक्षा घौटय है।
(२) वस्तुत्व-सामान्य विशेष स्वभावको लिये हुए हराएक वस्तु कार्यकारी है, व्यर्थ नहीं है।
(३) व्यत्व-स्वभाव या विभाव पर्यायोंमें हरएक वस्तु परिणमनशील है तो भी अखण्ड बनी रहती है ।
(४) प्रमेयत्व-वस्तु किसीके द्वारा जाननेयोग्य है | यदि जानी न जावे तो उसकी सत्ता कौन बतावे ।