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योगसार टीका। है । बादर एकेन्द्रियादि कहीं कहीं हैं | परमाणु व स्कंध रूप पुद्रल सर्वत्र है। __इन छः द्रव्योंका अस्तित्व कभी मिट नहीं सकता है। उनके भीतर संसारी जीव कर्मबंध सहित अशुद्ध हैं | उनको भी जब शुद्ध निश्चय नयकी दृष्टिसे देखा जाये तो ये शुद्ध ही झलकते हैं । इस दृष्टिले पुल द्रव्य भी परमाणुरूप शुद्ध दिखता है | समताभाव लाने के लिये इन छहों द्रव्योको मूल स्वभावस शुद्ध अलगर देखना चाहिये । तब राग द्वेष नहीं रहेंगे।
समाधिशतकमे कहाईयस्य सम्पन्नमामाति निम्पन्देन स जाता। अत्रज्ञमक्रियाभोगं स शमं याति नेतरः ॥ ६७ ॥
भावार्थ-यह चलता फिरता जगत भी जिसकी दृषिमें शुद्ध निश्चयनयके बलसे चलन रहित थिर, विकल्प रहित निर्विकल्प क्रिया व भोगरहित निर्विकल्प दिखता है वह समभावको प्राप्त करता है । मोक्षमार्ग पर चलनेवालेके छः द्रव्योंकी सत्ताका पक्का निश्चय होना चाहिये, तब भ्रम रहित ज्ञान होगा, तब परद्रव्य व परभावोंसे उदास होकर स्वद्रव्यमें प्रवृत्ति हो सकेगी।
सात तत्व हैं-जीव, अजीव, आस्त्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष । जीव तत्वमें सर्व अनन्त जीव आगए । अजीव तत्त्रमें शेष पांच द्रव्य आगए । कालाणु एक एक प्रदेशपर होनेसे कायरहित हैं। शेष पांच द्रव्य बहुप्रदेशी हैं | परमाणुमें मिलनेकी शक्ति है इसलिये. कालको छोड़कर शेष पांच दूज्योंको अस्तिकाय कहते हैं।
कर्मवर्गणाओंके आनेको आस्रव व कार्मण शरीरके साथ बन्धनेको बन्ध कहते हैं । ये दोनों आस्रव व बन्ध एक साथ एक समयमें होते हैं । इसलिये दोनोंके कारण भाव एक ही हैं ! मिथ्या