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यांगसार टीका। [२७३ ओंमें जानेको शनि धारी है । अथवा यह आत्मा अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशत्व व अगुगलघुत्व इन छः सम्यक्त गुणोंका धारी है।
यदि सात प्रकार विचार करें तो यह आत्मा अनंन ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख, अनंत ज्ञानचंतना, अनंत वीर्य, क्षायिक सम्यक्त, क्षायिक चारित्र, इन सात गुणम्वरूप है । अथवा भ्यादम्ति, स्यान्ना स्ति, स्यादवक्तव, स्यादस्तिनास्ति, स्यादस्ति अवक्तव्य, म्यादस्ति अबक्तव्य, स्यान्नास्ति अवतन्य. इन सात अंगोंसे सिद्ध होता है ! या इस जीवके कारण जीव, अजीव, आत्र, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष २ (६. नोक कम्य हो : या जा नेगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुत्र, शब्द, समभिरूढ़ एवंभून मात नयोंन विचारा जाता है ।
नौ प्रकार विचार करे तो यह आत्मा नौ कंवल लब्धिम्प है। अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतदान, अनलाभ, अनंतभांग, अनंतउपभोग, अनंतत्रीय, क्षायिक सम्यक्त, क्षायिक चारित्ररूप है | या यह आत्मा पुण्यपाप सहित सात तत्व से नौ पदार्थोमें तिष्ठना है। जीवकी अपेक्षा नौ पदार्थीका विचार है | इस तरह आत्माको अनेक गुणोंका व स्वभावका धारी विचार करे जिससं वस्तुका विचार समभा
से हुआ करे, रागद्वेषको व सांसारिक विकल्पोंको जीता जासके | गुणोंकी भावना करते करते ही स्वानुभव शक्ति होती है | विकल्प रहिन भाव में आना ही स्वानुभव है । समयसारकलशमें कहा है--
चित्रात्मशक्तिसमुदायमयोऽयमात्मा सद्यः प्रणश्यति नयेक्षणखण्ड्यमानः ।