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घोगसार टीका।
१४१ श्रद्धान है कि उसकी धारणाको जगानेके लिये ध्यानमय मूर्तिका दर्शन व उसके सामने गुणानुवाद रूप पूजन निमित्त कारग है । निमित्त उपादानको जगाने में प्रवल कारण होते हैं । रागका निमित्त रागभाव व वीतरागी निमित्त वीतरागभाव जागृत कर देती हैं। अभ्यासी साधकको सदा ही भावोंकी निर्मलताके लिये निर्मल निमित्त मिलाने चाहिये, चाधक निमित्तोस बचना चाहिये ।
तत्वानुशासनमें कहा हैसंगत्यागः कषायाणां निग्रहो व्रतधारण । मनोऽक्षाणां जयोति सामग्री ध्यानगम्मने ॥ ७ ॥
भावार्थ-परिग्रहका त्याग, कशयोका निरोध, अहिंसादि व्रतका धारण, मन व इंद्रिचोका विजय, ये कर बातें ध्यानकी उत्पत्तिके लिये सामग्री है।
स्वाध्यायाद्ध्यानमध्यानन्त्यान्नास्वाध्यायमान्नेत् । ध्यानम्वाध्यायसंपत्त्या परमात्मा प्रकाशले ।। ८१ ॥
भावार्थ-शास्त्रका मनन करते करने ध्यानमें चढ़ जाओ। न्यानमें मन न लगे तो वाध्याय में आजाओ। ध्यान और स्वाध्यायके लाभके द्वारा परमात्माका प्रकाश होता है।
शून्यागार गुहाय चा दिवा घ। यदि वा नाश । श्रीपशुक्लीबजीवानः क्षुद्रामाश्रमांचरे ॥ १० ॥ अन्यत्र वा कन्धिो प्रशस्ते प्रारमुके लमे। चेतनाचेतनाशेष यानविविवर्जित ॥ २१ ॥ भूतले वा शिलावर सुखासीनः स्थितोऽथवा । सममृज्वायत गाचं निकंपावरचे दधल ॥ २२॥