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योगसार टीका |
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यह सदा अपने शुद्ध आत्मीक गुणोंमें ही परिणमन करता है । संसार अवस्थामें कर्मोंके उदयके निमित्त होनेपर यह स्वयं रागद्वेष, मोहरूप व नाना प्रकार के विभावरूप परिणमन करता है । जैसेस्फटिकमणि लाल, पीले, नीले वस्तुके सम्पर्कसे लाल, पीला, लीला रंगरूप परिणमन कर जाता है तौभी निर्मलता को खो नहीं बैठता है, केवल ढक देता है, इसीतरह आत्मा सराग दशा में रागद्वेषरूप परिणमता हुआ भी वीतरागताका लोप नहीं कर देता है, केवल ढक देता है, निमित्त न आनेपर यह सदा स्फटिकके समान शुद्ध श्रीतरागभाव ही झलकता है ।
( ९ ) आरी - यह आत्मा अझिके समान सदा जलता रहता है । किन्हीं भी विषयोंको व परके आक्रमणको नहीं होने देता है । जय यह संसार पर्याय होता है तब यह स्वयं ही अपने आत्मीक ध्यानको अग्नि जलाकर अपने कर्मनलको भस्म करके शुद्ध होजाता हैं। यह आत्मा अनुपम अग्नि हैं जो कर्म की दाहक है, आत्मीक की पोषक है व सदा ज्ञानके द्वारा स्वपर प्रकाशक है । इन नौ दृष्टांतों से आत्माको समझकर पूर्ण विश्वास प्राप्त करना चाहिये। समयसारमें कहा है
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जह फलियमणि विशुद्ध ण सयं परिणमदि रागमादीहिं । राइज्जदि अहिंदु सो रत्तादियेहिं दच्बेहिं ।। ३०० ॥ एवं णाणि सुद्धो ण स परिणमदि रागमादीहिं । राज्जदि अहिंदु सो रागदीहिं दोसेहिं ।। ३०१ ३
भावार्थ- -जैसे स्फटिकमणि शुद्ध है, स्वयं लाल पीली आदि । नहीं होती है, परंतु जब लाल पीले आदि द्रव्योंका संयोग होता है तब वह लाल पीली आदि होजाती है । इसीतरह ज्ञान स्वरूपी