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योगसार टीका। [२६१. आप ही जिन हैं यह अनुभव मोक्षका उपाय है।
जो जिण सो दउँ सो जि हउँ पहउ भाउ णिभंतु ।। मोक्खहँ कारण जोया अणु ा तंतु ण गंतु ॥ ७५॥
अन्वयार्थ-जो जिण सा ह जो जिनेन्द्र परमात्मा है वह मैं हूं (सो जिह) वही में हूं। महज णिभंतु भाउ) ऐसी ही शंका रहित भावना करे (जाइया) हे योगी : माक्सह कारण अण्णु ते ण मंतु ण ) मोक्षका आय यही है और कोई तंत्र या और कोई मंत्र नहीं है।
भावार्थ - मोक्षका उपाय संक्षेपमें यही है कि अपने आत्माको निश्चय नयसे जैसाका तैमा समझे। मूल स्वमादम नह आत्मा स्वयं जिनेन्द्र परमात्मा हैं। कर्भ रहित आत्माको जिनेन्द्र कहते हैं । अपना
आत्मा निश्चय द्रव्यकम, भावकम और नोकर्मा रहित है, व्यवहार नयमे या पर्याय की दृष्टिम भरा आत्मा कम सहित अशुद्ध है परन्तु शुद्ध होने की शक्ति रखता है | काग समय सार है । और श्री जिनेन्द्रका आत्मा शुद्ध व कम गमयसार है | यह भेद दिखता है परन्तु निश्चय नबसे या द्रव्याष्टिले यह भेद नहीं दिखता है ।
आत्मा परमात्मा सब तरह समान है। केवल सत्ताकी अपेक्षा भिन्नता है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव जी एक आत्माका है बही दूसरी आत्मा का है | सर्व आत्माओंका चतुष्टय समान है, सहरा हैं, एक नहीं है-एक समान है । जैसे हजार गेंड्रक दाने समान आकार व गुणोंक हो वे सत्र समान हैं तौभी सब दाने अलग २ हैं । हराएक आत्माका द्रव्य अपने अनंतगुण व पर्यायोंका अभेद व अखण्ड पिंड है।
हरएक आत्मा क्षेत्रसे असंख्यात प्रदेशी है, हरएक आत्मा