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योगसार टीका। [१३७ निश्चय स्तुति या नमस्कार है | अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु पांच परमेष्टीकी आत्माकी स्तुति सोहरएक आत्माकी स्तुति हैं। क्योंकि निश्चयसे हरएक आत्मा आत्मीक गुणोंका भण्डार है। जगतकी सब आत्माएं निश्चयनयसे ममान शुद्ध है अतएव तीन लोकके प्राणी जिसको व्याले हैं, पूजते हैं व वंदते हैं. वही परमात्मा या आत्मा हैं, वही में है। मैं ही त्रिलोकपृय परमात्मा जिनेन्द्र हूँ ऐसा भ्रान्ति रहित निश्चत्रमे जानना चाहिये । तश और किसी दूसरे परमात्माकी ओर दृष्टि न रखकर दो भिन्न २ व्यक्तियोंमें ध्याता व भ्येयकी कल्पना न करणं आपहीको भ्याता व ध्येय मानके अद्वैत कक ही भावमें तल्लीन हो रही मोक्षमार्ग है । समयसारमें कहा है
यवहारो भासन जनो देह मल को । ण दु णिच्छयास जीवो देहो य कदावि एकहो ॥ ३२ ॥ इणमण्णं जीवादो देहं पुमालमय शुणितु मुणी । मरणदि हु संशुद्धः शदिदो मए केवली भयवं ॥ ३३ ॥ तं णिच्छयण जुलदि ण सरीरगुणा लि होति केवालणो । केवलिगुणो श्रुष्णादि जो सो त केवलि त्रुणदि ॥ ३४ ॥ जो मोहं तु जिणिना, जाण सहावाभियं मुणदि आदं । तं जिद मोह साहुँ, परमविमाणका वेति ॥ ३७॥
भावार्थ-व्यवहारनयसे ऐसा कहते हैं कि शरीर और आत्मा 'एक है। परंतु निश्चयनयम आत्मा व शरीर एक पदार्थ नहीं है । मुनिगण केवली भगवानके पुद्गलमय शरीरकी स्तुति व्यवहारनयसे करके मानते यही है कि हमने केवली भगवानकी ही स्तुति या यंदना की । परंतु निश्चयनयसे यह स्तुति ठीक नहीं है। क्योंकि शरीरके गुण केवली भगवानकी आत्माके गुण नहीं हैं, निश्चयसे जो ।