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योगसार टीका |
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(५) अगुरुलघुत्व - वस्तु कभी अपने भीतर पाए जानेवाले गुणको कम या अधिक नहीं करती है। मर्यादा मे कम या अधिक नहीं होती है।
(६) प्रदेश-एक वस्तु कुछ न कुछ आकार रखती है, प्रदेशको रखती है. क्षेत्रको घेरती है। जितने आकाशको एक अविभागी पुल पर रोकता है उतने सूक्ष्म आकाशको एक प्रदेश कहते हैं । वह एक नाम है। इस मापसे लोकव्यापी छः की मी तो एक जीव द्रव्य, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश चारों समान असल्यात प्रदेशधारी हैं। आकाश अनंत प्रदेशवारी है। काला एक प्रदेशधारी है।
संख्यात अलग २ स्केचप में सर्वत्र हैं ।
अनंत आकाशके मध्य लोकाकाश है, उसमें छहीं द्रव्य सयंत्र हैं। धर्म, अ एक एक लोकव्यापी है, काला हैं, सब लोक पूर्ण हैं। पुल परमाणु व जीव सूक्ष्म शरीरवारी एकेन्द्रिय सर्वत्र हैं, चाहर कहीं कहीं हैं। कोई स्थान इन छ: बिना नहीं है । जीवद्रव्य अखण्ड होनेपर भी मापसे लोकाकाश प्रमाण असंख्यातप्रदेशी है। जैन सिद्धांत में अल्प या बहुत्वका ज्ञान करानेके लिये गणनाके २१ मे बताए हैंसंख्यान तीन प्रकार-जयन्त्र, मध्यम उत्कृष्ट | असंख्यात ३ प्रकारपरीतासंख्यात फासंख्यात असंख्यासाख्यान हरएक जधन्य, मध्यम उत्कृष्ट नौ प्रकार, अनंत नौ प्रकार परीतानंत युक्तानंत अनंतानंत हरएक जघन्य मध्यम, उत्कृष्ट तीनों प्रकार | मनुष्यकी बुद्धि अल्प हैं इससे क्रम व अधिकका अनुमान होनेके लिये २१ भेद गणना बताए हैं |
हरएक आत्मा अखंड असंख्यात प्रदेशी है तथा यह परम शुद्ध है। सर्व ही प्रदेश शुद्ध हैं, स्वभावसे स्फटिकके समान निर्मल हैं।
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