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योगसार टीका। [१११ में सिद्ध के समान परम निश्चल है, भोगी चंचलना रहित हूं, मन बचन कायके पंद्रह योगोंने अन्य हूं, में कम तथा गोकर्मका आकर्षण करनेवाला नहीं । न मेरेमें अजीव लाव ग आस्त्रत्र तत्व है, न यन्ध तत्व है, न मात्र है, न निजरा है, न मोक्ष तत्व है । मैं तो सदा ही शुद्ध जीवत्वका धारी एक जीत्र है । मुरक, सत्ता, चैतन्य (स्वानुभूति), बोच ये चार ही मेरे निज प्राण है जिनसे में सदा जीवित हूं।
जैसे सिद्ध भगवान कृतकृत्य हैं वैसे मैं कृतकृत्य है | न चे जगतकं चिनेवाले हैं न मैं जगतका रचनेवाला है. न ये किसीको मुख या दुःख देते हैं, न मैं किसीको सुख वा दुःख देता हूं, वे जगतके प्रपंच निराले, मैं भी जगतके प्रपंच निराला हूं, वे असंख्यातप्रदेशी अखण्ड है, में भी असंख्यातप्रदेशी अखण्ड हूं । के अन्तिम शरीरप्रमाण आकारधारी हैं, मैं अपने शरीरप्रमाण आकारधारी हूं परंतु प्रदेशोंकी संग्यामें कम नहीं हूं । वे सिद्ध भगवान सर्व गुणस्थामकी श्रेणियोंसे बाहर हैं। मैं भी गुणस्थानोंसे दृरवर्ती हूं। सिद्ध भगवान चौदह मार्गणासि परे हैं, मैं भी चौदह मार्गणाओस जुदा हूं ।
सिद्ध भगवान तृष्णाकी दाहसे रहित हैं, में भी तृष्णाकी दाइसे रहित हूं । सिद्ध भगवान कामवासनासे रहित हैं, मैं भी कामविकारसे रहित हूं । सिद्ध भगबान न ली है, न पुरुष है, न नपुंसक है। मैं भी न स्त्री हूं, न पुरुष हूं, न नपुंसक हूं। सिद्ध भगवान क्रोधकी कालिमासे रहित परम क्षमावान है, निन्दकपर रोष नहीं करते। मैं भी क्रोधके विकारमे रहिन परम क्षमावान हूं, निन्दकपर समभारका चारी हूं। सिद्ध भगवान कुल, जाति, रूप, बल, धन, अधिकार, तप, विधा इन आठ मदोंसे रहित परम कोमल परम मात्र गुणधारी हैं।