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योगसार टीका पीड़ा करका आदि, बारामी "हसा जो अर्थ व काम पुरुषार्थक साककमें आ क है, ननको वह साधारमा गाइन्धी त्याग नहीं कर सत्ता है, यथा आम्भी भी नहीं करता है।
२) सत्य अपना-सत्य बोलता है पर डाकारी बचत ही बोलता ! म निजी मारा न ओटदा है । आरम्भ. साधक बलोंको त्याग नहीं कर सकता।
(३ मनाय अगुवन-गिरी पड़ी व भी हुई क्रितीकी बम्नु नहीं हो पाया है , टपाट, विभागवान बबना है ।
( ब्रह्मचर्य आश्रत-काली सन्दीप पखक बीकी रक्षा करता है ।
(५. पारग्रह न्या. अभवत-तणांक मदान के लिये सम्प.. तिका प्रमाण करता : उतना मर्यादा पुर्व जिपर परोपकार व घार्थ जीवन बिताता है।
यह गृहस्थी इस भाक्यर यान रखता हैसमेव हि जैनान सर लोबिक विधिः । या सम्यान का न त ।
भावार्थ-जन इलस्थ उन सर्व लौकिक नियमको मात्र कर लेगा कि जिनसे अपने असले पाच अप्रत में बाधा नहीं आने । सामाजिक नियम का हरिबस्न उस आधारसर कर सकता है।
श्री जिनसनाचार्य महापुराणमें कहते है-- हिंसा सत्याचा अहवारेण्याच्च बादरभेदात । हातान्मांमान्मयादिति हिमोऽसूलमाः ।।
भावार्थ-स्थल हिंसा: असत्य, चोरी, अग्रहा. परिग्रहका त्याग तथा अभा नहीं ज्वलन, मांस नहीं खाना, मदिरा नहीं पीना, ये गृहस्थीके आठ मूलगुण हैं।