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________________ १०२) योगसार टीका पीड़ा करका आदि, बारामी "हसा जो अर्थ व काम पुरुषार्थक साककमें आ क है, ननको वह साधारमा गाइन्धी त्याग नहीं कर सत्ता है, यथा आम्भी भी नहीं करता है। २) सत्य अपना-सत्य बोलता है पर डाकारी बचत ही बोलता ! म निजी मारा न ओटदा है । आरम्भ. साधक बलोंको त्याग नहीं कर सकता। (३ मनाय अगुवन-गिरी पड़ी व भी हुई क्रितीकी बम्नु नहीं हो पाया है , टपाट, विभागवान बबना है । ( ब्रह्मचर्य आश्रत-काली सन्दीप पखक बीकी रक्षा करता है । (५. पारग्रह न्या. अभवत-तणांक मदान के लिये सम्प.. तिका प्रमाण करता : उतना मर्यादा पुर्व जिपर परोपकार व घार्थ जीवन बिताता है। यह गृहस्थी इस भाक्यर यान रखता हैसमेव हि जैनान सर लोबिक विधिः । या सम्यान का न त । भावार्थ-जन इलस्थ उन सर्व लौकिक नियमको मात्र कर लेगा कि जिनसे अपने असले पाच अप्रत में बाधा नहीं आने । सामाजिक नियम का हरिबस्न उस आधारसर कर सकता है। श्री जिनसनाचार्य महापुराणमें कहते है-- हिंसा सत्याचा अहवारेण्याच्च बादरभेदात । हातान्मांमान्मयादिति हिमोऽसूलमाः ।। भावार्थ-स्थल हिंसा: असत्य, चोरी, अग्रहा. परिग्रहका त्याग तथा अभा नहीं ज्वलन, मांस नहीं खाना, मदिरा नहीं पीना, ये गृहस्थीके आठ मूलगुण हैं।
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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