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________________ योगसार टीका ! १०१ .. सभीके द्वारा गुणा स्मरण क्षेत्र भक्ति है । ६-जिन समयों में जन्म, सप, शालिक निर्वाः मानना हातों बार गुण स्मरण काल भक्ति है। छः प्रकारमें देवपूजा होती है। यथासम्भव नित्य करे। (२) गुम भक्ति-आचाचं, चपा याय, माधुली विनय, सेवा, उनसे उपदेशा ग्रह यदि प्रत्यक्ष न हो तो परोक्ष जनकी शिक्षाको मान्य रचना गुरुसेवा है। (३) स्वाध्याय-तत्वज्ञान पुर्व अध्यात्मिक शास्त्रोको पढ़ना व सुनना व विचारना । (४ संयम-नियनित भाहारा दि करना, स्वच्छंद वर्तन म करना। (५) नप–प्रातःकाल ६ संन्याकाल कुछ देर तक आत्मध्यानका अभ्यास करता. सामायिक पाठ पढ़नः, आत्माका स्वरूप विचारना । दान-मस्तिपूर्वक कमन्स. नुन्नि, आर्यिका, श्रावक आधिकाको व दवाभबसे प्रार्ण मात्रको आहार, औषधि, अभय व ज्ञान दान देना । तया अार मुगुमोको पालना ! ई मलगुण भिन्न भिन्न आचारीक मदम को प्रकार हैं: ममांसमजुन्यागें: माहातपंचलन । अट्री मल्लगाना ः निमोनमः ॥६६॥ (रल श्रा०) भावार्थ-१-मदिग नह रीना, २ मांस नहीं खाना, ३-मधु नहीं खाना, क्योंकि मविषयोंका बालक है ब हिंमाकारक है । इन तीन मकारोंको नहीं मेछा, तभा पांच अप्रलोको पालना । (१) अहिंसा अगुवन-संकल्पी हिंसा नहीं करना । जैसे शिकारको मांसाहारके लिये धर्माध पबिध, वृथा मौजशौकों प्राणी A
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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