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________________ १००] योगसार टीका । (३) कृषिकर्म-खेती करने व करानेका व प्रबन्ध करनेकी व्यवस्था! (४) वाणिज्यकर्म-देश परदेशमें मालका क्रय विक्रय करना १५ शिल्पकर्म नाना प्रकारके उद्योगोंसे आवश्यक वस्तुओंको बनाना। (६) विद्याकर्म-गाना, बजाना, नृत्य, चित्रकारी आदिक हुनर । काम पुरुषार्थमें वह न्यायपूर्वक व धर्मका खण्डन न करते हुए पांचों इन्द्रियोंक भोग भोगता है ! स्पर्शन इन्द्रियके भोगमें अपनी विवाहिता स्त्री सन्तोष रखता है, रसना इन्द्रिय भोगमें शुद्ध व स्वास्थ्यवर्धक भोजनपान ग्रहण करता है, प्राण इन्द्रियके भोगमें शरीररक्षक सुगर लेता है, चक्षु इन्द्रियके भोगमें उपयोगी ग्रन्थोंका व वस्तुओंका अवलोकन करता है, कण इन्द्रियके भोगमें उपयोगी गानादि सुनता है। धर्म पुरुषार्थ में वह गृहस्थ नित्य छ: कमका साधन करता है:देवपुजा गुरूपान्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः । दानं चंति गृहस्थाणां षट्कर्माणि दिन दिने । (पमनंदि श्रावकाचार) (१) देवपूजा ---अरहन्त व सिद्ध परमात्मा-जिनेन्द्रकी भक्ति करना । उसके छ: प्रकार हैं-१-नाम लेकर गुण स्मरण नाम भक्ति है.। २-स्थापना या मुर्ति द्वारा पूजन, दर्शन व जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल इन आठ द्रव्योंसे पूजन स्थापना भक्ति है। ३-अरहान व सिद्धके स्वरूपका विचार द्रव्य भक्ति है। ४-अरहन्त व सिंदके भावोंका मनन भाव भक्ति है । ५-जिन स्थानोंसे महान पुरुषोंने जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाणको पाया उन
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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