________________
योगसार टीका |
पण्डित आशाघर सागारमामृत में कहते हैंमद्यपलमधुनिशाशनपञ्चफली विरतिपञ्चकानुनी । जीवदया जमानमिति च कचिदमूलगुणाः ॥ १८२ ॥ भावार्थ - ये भी आठ मूलगुण हैं - ( १ ) मदिरा त्याग, (२)
मांस त्याग, (३) मधु त्याग, (४) रात्रिभोजन त्याग, (५) पांच फ्ल पाकर वह गोपीर त्याग (६) पांच परमेष्टी भक्ति, (७) जीव दया, (८) जल छानकर पीना | पुरुषार्थसिद्धपाय में कहा है-
म मांसं क्षौद्रं पोदुम्बरफलानि यत्नेन । हिंसायुपरताव्यानि प्रथममेव ॥ ६१ ॥
[ १०३
भावार्थ – हिंसा से बचनेवालेको प्रथम ही मदिरा, मांस, मधुको त्यागना व ऊपर कड़े पांच फल न खाने चाहिये ।
आत्मज्ञानी गृहस्थ जिनेन्द्रका व अपने आत्माका स्वभाव एक समान जानता है इसलिये निरन्तर जिनेन्द्र के ध्यानसे वह अपना ही ध्यान करता है। गृहस्थ सम्यही आत्माके चितवनको परम रुचिसे करता है । शेष कामों को कमोंके उदयवश लाचार होकर करता हैं। उस गृहस्थ के ज्ञानचेतनाकी मुख्यता है। गृहस्थकं रागद्वेषपूर्वक कामों व कर्मफलभोग में भीतर से समभाव है । भावना यह रखता हैं कि कब कसैका उदय टले जो मैं गृह प्रपंचसे हूं ।
समाविशतक में कहा है
आत्मज्ञानात्परं कार्य न बुद्धौ धारयेचिरम् ।
कुर्यादिवशात् किंचिद्वाकायाभ्यामतत्परः ॥ ५० ॥
भावार्थ - ज्ञानी सम्बन्ष्टी आत्मज्ञान के सिवाय अन्य कार्यको बुद्धिमें देरतक नहीं धारता है । प्रयोजनवश कुछ काम कहना हो