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योगसार टीका। कृष्ण, नील, कापोत, तीन अशुभ व पीत, पन, शक्ल तीन शुभ लेश्याएं हैं। (१२) भव्य मार्गणा दो प्रकार
भविया सिद्धी जेसि जीवाणे ते हवंति भवसिद्धा । तबिवरीया भव्या संसारादो ॥ सिझंति ॥ ५५६ ।।
भावार्थ- जीन जीवोंमें सिद्ध होने की योग्यता है ये भव्य हैं। जिनमें यह योग्यता नहीं है वे अभव्य हैं। (१२) सम्यक्त मार्गणा छ: प्रकार
छप्पञ्चणयविहाग असा गवरोलगः । अगाए, अहिगमेण य सहण होइ सम्मत्तं ।। ५६० ॥
भावार्थ-छः द्रव्य, पांच अस्तिकाय, नव पदार्थोंका जैसा जिनेन्द्रने उपदेश किया है वैसा अद्धान आज्ञाने या प्रमाणनयके द्वारा होना सम्यक्त है । मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, उपशम, बेदक, क्षायिक ये छः भेद हैं। (१३) संज्ञी मार्गणा दो प्रकार- ..
णोइन्दियआवरणखओपसम तज्जवोहण सम्णा । सा जम्स सो दु साणी इदरो सेसिदिअवबोहो ।। ६५२ ॥ सिक्वाकिरियुषदेसालावग्गाही मणोवलंघेण । जो जीवो सो सण्णी तब्दिवरीयो असणणी दु ।। ६६० ॥
भावार्थ-नो इंद्रिय जो मन उसको रोकनेवाले ज्ञानावरणके क्षयोपशमसे जो बोध होता है उसको संज्ञा कहते हैं । यह संज्ञा जिसको हो वह संझी है । जो केवल इंद्रियोंसे ही जाने वह असंज्ञी है। शिक्षा, क्रियाका उपदेश, वार्तालाप, संकेत वा जो मनके अलंबनसे