________________
11
योगसार टीका |
(८) संयम मार्गणा सात प्रकारवदसमिदिकसायाणं दण्डाण तहिंदियाण पंचपटं । धारणपालणणिगृहचागजओ संजमो भणियो । ४६४ ॥ भावार्थ — पांच व्रत धारना, पांच समिति पालना, पचीस कषायोंको रोकना, मन, वचन, काय तीन दण्डोंका त्याग करना व पांच इन्द्रियोंका जीतना, सो संयम कहा गया है। असंयम, देशसंयम, सामायिक छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म सांपराय, यथाख्यात, ये सात भेद हैं।
(९) दर्शन मार्गणा चार प्रकार
—
जं सामरणं गहूणं भावाणं व कट्टुमायारं ।
अविसेसिण अहे सणमिदि मण्णवे समये ॥ ४८१ ॥
[
भावार्थ — जो पदार्थों का सामान्य ग्रहण करना, उनका आकार न जानना, न पदार्थका विशेष समझना सो दर्शन आगममें कहा गया है । चक्षु, अचनु, अवधि, केवल ये चार भेद हैं-(१०) लेश्या भार्गणा छः प्रकार —
लिप अप्पीकर एटीए पियअगुण्णपुष्णं च । जीवोत्ति होदि लेम्सा लेस्सागुणजाणयऋखादा ॥ ४:८ ॥ जोगपती लेखा कसा उदयारा होई ।
ततो दोष्णं कबन्ध
समुह ॥ ४८९ ॥
भावार्थ - जिन परिणामक द्वारा जीव अपनेमें पुण्य तथा पापकर्मको लेपना है या ग्रहण करता है उनको लेया श्याके गुणोंके झायकोंने कहा है। कपायोंके उदयसे रंगी हुई योगोंकी प्रवृत्तिको लेश्या कहते हैं। उससे पुण्य व पापका प्रकृति, प्रदेश, स्थिति, अनुभाग चार प्रकारका बन्ध होता है ।