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योगसार टीका।
४ चार वचनके-सत्य, असत्य, उभय, अनुभय ।
७ सान कायके औदारिक, औदारिक मिश्र (अपर्याप्तके ) वैकिायक, वैक्रियिक मिश्र (अपर्याप्तके ), आहारक, आहारक मिश्र, कार्मण-मनुष्य व तियचोंके औदारिक दोनों, देवनारकियोंके पैक्रियिक दोनों, छटे गुणस्थाचयती मुनिक आहारक दोनों, विग्रहगतिमें कामण योग होते हैं तथा केवली समुद्घातमें भी तीन समय कार्मण योग होता है।
५ बंद मागणा ३ तीन प्रकार--- पुरुसिंच्छिसंढवेदोदयेण पुरुसिंच्छिसंढओ भावे । णामोदयेण दवे पाएण समा कहि विसमा ॥ २७० ॥ वेदस्मुदीरणाप परिणामम्स य हवेज संमोहो । संमोहेण ण जाणदि जीको हु गुणं व दोमं वा ॥ २७१ ।।
भावार्थ-पुरुष वेद, स्त्री वेद, नपुंसक वेद, नोकषायों उद. यसे जो क्रमस पुरुष, स्त्री या नपुंसक कैसे परिणाम होते हैं उनको भाव बंद कहते हैं तथा नामकर्मके उदयग्ने जो तीन प्रकारकी शरीर रचना होती है उसको द्रव्यवंद कहते हैं । प्रायः भाव वेद व द्रव्य वेद समान होते हैं, कहीं २ विसम होते हैं । देव, नारक व भोगभृमियोंमें जैसा त्र्यवेद होता है वैना ही भाववेद होता है। किंतु कर्मभूमिके मानष तथा पशुओंमें एक द्रव्य वेदक साथ तीनों ही प्रकारका भाववेद हो सक्ता है । मागणामें भाववेदकी मुख्यता है । पुरुष वेद, स्त्री वेद, नपुंसक वेद, नोकपायकी उदीरणाम्मे जीवके परिणाम मोहित या मुर्छित होजाते हैं तब यह मोही जीव गुण या दोषका विवेक नहीं रखता है। यह कायभाव अनर्थका कारण है ।
(६) कषाय मार्गणा–पञ्चीस प्रकार