________________
३० ]
योगसार टीका
एक गुणमें समय समय होनेवाली ऐसी अनन्त पर्याय होती हैं। पर्याये सब नाशवंत हैं । जब एक पर्याय होती है तब पहली पर्यायको नाश करके होती है । पर्यायोंको अपेक्षा हरसमय द्रव्य उत्पाद व्यय स्वरूप हैं अर्थात पुरानी पर्यायको बिगाड़ कर नवीन पर्यायको उत्पन्न करता हुआ द्रव्य अपने सर्व गुणोंको लिये हुए बना रहता है । इसलिये द्रव्यका लक्षण गुणपर्ययवत् द्रव्यं गुण पर्यायवान द्रव्य होता है ऐसा किया है।
हरएक द्रव्यमें जितनी पर्यायें सम्भव होसकती हैं उन सबकी -शक्ति रहती है, प्रगटता एक समय में एककी होती है। जैसे मिट्टीकी डली में जितने प्रकारके वर्तन, खिलौने, मकान आदि बनने की शक्ति है, वे सब पर्याय शक्ति हैं, प्रगटता एक समय में एक पर्याय हो - होगी । जैसे मिट्टी से प्याला चनाया, प्याला तोड़कर मटकेना बनाया, I - मटकेना तोड़कर एक पुरुष बनाया. पुरुष तोड़कर स्त्री बनाई आदि । इन सब पर्यायों में मिट्टी वहीं हैं व मिट्टी के सब गुण भी दे ही हैं। स्पर्श, रस, गन्ध, वर्णमय मिट्टी सदा मिलेगी ।
द्रव्य जगतमें छ: हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश, और कालागु इन चारों द्रव्यों में एकसमान सदृश स्वभाव पर्यायें ही होती रहती हैं। उनके परके निमित्तसे विभाव पर्यायें नहीं होसती हैं । वे सदा उदासीन पड़े रहते हैं ।
सिद्धात्माओं में भी स्वभावसदृश पर्यायें होती हैं क्योंकि उनके ऊपर किसी पर द्रव्यका प्रभाव नहीं पड़ सक्ता है । वे पूर्ण मुक्त है । परंतु संसारी आत्माओं में फर्मोका संयोग व उदय होनेके कारण विभाच पर्याय व अशुद्ध पर्यायें होती हैं । परमाणु जो जघन्य अंश स्निग्ध व रूक्ष गुणका रखता है, किसीसे बन्धता नहीं है, उस - परमाणुमें भी स्वभाव पर्यायें होती हैं, जब यही सिग्ध व म