________________
योगसार टीका। परु ण कि पि वियाणि ) अन्य पर कुछ भी मोक्षमार्ग नहीं है ऐसा जान (णिच्छह एहज जाणि) निश्चयनयमेत ऐसा ही समय !
भावार्थ-निश्चयनयमे यथाथ कथन होना है । अथवा इस नयसे उपादान कारणका वर्णन होता है। निश्चयनयसे मोक्षका मार्ग एक अपने आत्माका ही दर्शन है, इसके सिवाय कोई और मार्ग नहीं है। यदि कोई परक आश्रय वर्तन कर व इसीसे मोक्ष होना माने नो वह मिमात्र है | मन बचन काय तीनों ही आत्मासे या आत्माके मूल स्वभाव मिन्न हैं । आत्माका मिन्न स्वभाव सिद्धके समान है, जहां न मनके संकल्प विकल्प हैं न पचनका व्यापार है न कायकी चेष्टा है । व्यवहार धर्मका सर्व आचरण मन, वचाई कायके आधीन है, इसलिये पराश्रय है ! निमित्त कारण तो होसक्ता है परंतु उपादानका कारण नहीं होसक्ता है।
जो कुछ स्वाश्रेय हो, आत्माके ही आधीन हो वही उपादान कारण है | जब उपयोग मात्र एक उपयोगके धनी आत्माक्री तरफ हो अभेद व सामान्य एक आत्मा ही देखने योग्य हो व आप ही देखनेवाला हो, कहनेको दृष्टा व दृश्य दो हों, निश्चय एक आत्मा ही हो । इस निर्विकल्प समाधिभारको या स्वानुभवको आत्मदर्शन कहते हैं। यह आत्मदर्शन एक गुप्त तन्व है, वचनसे अगोचर है, मनसे चितवन योग्य नहीं है, केवल आपसे ही अपनेको अनुभवने योग्य है ।
__ आत्मा गुण पयांयवान एक अग्रण्ड द्रव्य है। मनके द्वारा व वचनके द्वारा खंड रूप होजाता है, आत्माका पूर्णस्वरूप लक्ष्यमें नहीं आसक्ता | इसी लिये सर्व ही मनके विचारोंको छोइनेकी जरूरत है । जो कोई मौनसे स्वरूप गुप्त होगा वही आत्माके भीतर रमण कर जायगा । गुण गुणीके भेद करनेसे भी आत्माका म्वरूप