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नहीं करना चाहिये, क्योंकि शक्तिके न होनेपर ईर्षा द्वेष करना विना प्रयोजन का है । जिसप्रकार सिंह ही अपने शब्दको कर सकता है परन्तु उस शब्दको मेढ़क नहीं कर सकता अर्थात् सिंहके शब्द करनेमें मेढ़क असमर्थ है, उसीप्रकार यद्यपि पूर्वाचार्योंने ग्रंथोकी रचना की है तो भी मैं वैसेग्रंथों की रचना करनेमें असमर्थ ही हूं । जिसप्रकार अत्यंत छोटे देहका धारक कुंथु जीव भी देहधारी कहाजाता है और पर्वतके समान देहका धारणकरनेवाला हाथी भी देहधारी कहाजाता है उस प्रकार पुराण न्याय काव्य आदि शास्त्रोंको भलीभांति जानने वाला भी कवि कहाजाता है और अल्प शास्त्रोंका जाननेवाला मैं भी कवि कहागया हूं । मूंकपुरुष भले ही उत्तम न बोलता हो तभी वह बोलने की इच्छा रखता है, उसीप्रकार यद्यपि मैं समस्तशास्त्रा के ज्ञान से रहित हूं तौभी मैं इसचरित्रके वर्णनकरनेमें प्रयत्न करता हूं । जिसप्रकार चरित्रके सुननेसे पुण्यकी प्राप्ति होती है उसीप्रकार चात्रिके कथन करनेसे भी पुण्यकी प्राप्ति होती है। इसप्रकार भलीभांति विचारकर मैन इस श्रेणिकचरित्रका कथन करना प्रारंभ किया है । अथवा चरित्रोंके सुननसे भव्यजीवोंको संसारमें तीथकर इंद्र चक्रवर्ती आदि पदोंकी प्राप्ति होती है यह भलेप्रकार समझ और तीर्थंकर आदिके गुणोंका लोलुपी होकर, दृढ श्रद्धानी हो, मैं शुभद्राचार्य सारभूत उत्कृष्ट, और पवित्र श्रेणिक
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