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"प्रवचन-३
• ७६ कलियां फूल बनती है और कभी पता नहीं चलता, कहीं कोई शोर गुल नहीं होता, कहीं कोई आवाज नहीं होती। ऐसे चुपचाप बड़ा होने लगा। मैं तो उसमें यही बर्य देख पाता हूँ कि चुपचाप बढ़ने लगा। और यह चुपचाप बढ़ना दिखाई पड़ने लगा होगा क्योंकि घननाएं म घटना बहुत बड़ी घटना है। छोटे से छोटे भी बादमी के जीवन में घटनाएं घटती है, चाहे वे छोटी हों। बड़े मादमी के जीवन में बड़ी घटनाएं घटती हैं, चाहे कैसी भी हों। लेकिन ऐसा कोई व्यक्ति है जिसके जीवन में कोई घटना न घटी हो, जो इतना चुपचाप बढ़ने लगा हो कि चारों तरफ कोई वतुल पैदा न होता हो समय में, क्षेत्र में। तो वह अनूठा दिखाई पड़ा होगा कि वह कुछ विशिष्ट ही है। इसलिए शिक्षक उसे पढ़ाने गाए होंगे, उसने इन्कार कर दिया होगा क्योंकि वह पढ़ेगा नहीं। वह पढ़ा हुमा ही है। शिक्षक पढ़ाने बाए हैं तो वर्षमान ने मना कर दिया है। क्योंकि शिक्षकों ने पढ़ा है जो उसे पढ़ा सकते हैं, वह पहले से ही जानता है। इसलिए कोई शिक्षा नहीं हुई। शिक्षा का कोई कारण भी न था, कोई बर्ष भी न था। कोई घटना न घटी। वह चुपचाप बड़े हो गये। और हो सकता है कि यह बात भी अनुभव में आई होगी लोगों को। इतने चुपचाप कोई भी बड़ा नहीं हो सकता । ऐसा ही जीसस का भी जोवन. है । वे चुपचाप बड़े हो गए हैं। । दूसरी बात ध्यान में रख लेनी जरूरी है महावीर के जन्म के सम्बन्ध में, जो अर्थपूर्ण है । जो गाथा ( मिथ ) है, जो कहानी है वह यह है कि वह ब्राह्मणी के गर्भ में आए और देवताओं ने गर्भ बदल दिया। और क्षत्रियों के गर्भ में पहुंचा दिया। यह बात तथ्य नहीं है। यह कोई तथ्य नहीं है कि किसी एक स्त्री का गर्भ निकाला और दूसरी स्त्री में रख दिया। लेकिन यह बड़ी गहरी बात है और गहरी बात कई चीजों की सूचना है वह हमें समझनी चाहिए। पहली सूचना तो यह है कि महावीर का जो पथ है वह पुरुष का, भाक्रमण का, क्षत्रिय का है। महावीर का जो व्यक्तित्व है और उनकी खोज का पथ है वह क्षत्रिय का है । क्षत्रिय का इन बयों में कि वह जीतने वाले का है । और इसीलिए महावीर जिन कहलाए। जिन का मतलब है जीतने वाला, जिसका और कोई 'पप नहीं सिवाय जीतने के। जीतेगा तो हो उसका मार्ग है। और इसलिए पूरी परम्परा जैन हो गई। तो यह बड़ी मीठी कहानी चुनी है। ब्राह्मणी के गर्भ में था किन्तु देवताबों को उसे उठाकर क्षत्रिया के गर्भ में कर देना पड़ा। क्योंकि वह बच्चा.ब्राह्मण होने को न था।