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प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १६
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गई है । फिर वह दरवाजे से ठिठक गए, वापस लौट आए। थाली पर बैठ कर चुपचाप भोजन करने लगे । रुक्मिणी ने कहा कि मुझे बड़ी पहेली में डाल दिया आपने । एक तो आप ऐसे भागे कि मैंने पूछा : कहाँ जा रहे हैं तो उसका उत्तर देने तक की भी आपको सुविधा न थी । और फिर आप ऐसे दरवाजे से लोट आ कि जैसे कहीं भी न जाना था। हुआ क्या ? तो कृष्ण ने कहा कि मुझे प्रेम करने वाला, मेरा एक प्यारा एक रास्ते से गुजर रहा है। लोग उस पर पत्थर फेंक रहे हैं और वह मंजीरे बजाए चला जा रहा है, मेरा ही गीत गाए चला जा रहा है । लोग पत्थर फेंक रहे हैं। उसने उत्तर भी नहीं दिया है उनका । मन में भो सिर्फ देख रहा है कि वे पत्थर फेंक रहे हैं। खून की धारा बह रही है । तो मेरे जाने की जरूरत पड़ गई थी। इतने बेसहारे के लिए अगर मैं न जाऊँ तो फिर मेरा अर्थ क्या है ? तो रुक्मिणी ने पूछा कि फिर लौट क्यों आए ? उन्होंने कहा कि जब तक मैं दरवाजे पर गया, वह बेसहारा नहीं रह गया था । उसने मंजीरें नीचे फेंक दों और पत्थर हाथ में उठा लिया । उसने अपना इन्तजाम खुद ही कर लिया । अब मेरी कोई जरूरत नहीं है । उसने मेरे लिए मौका नहीं छोड़ा है ।
जब व्यक्ति अपना इन्तजाम स्वयं कर लेता है तो जीवन की शक्तियों के लिए कोई उपाय नहीं रह जाता। और हम सब अपना इन्तजाम स्वयं कर लेते हैं और इसीलिए वंचित रह जाते हैं । संन्यासी का मतलब ही सिर्फ इतना है कि जो अपने लिए इन्तजाम नहीं करता, छोड़ देता है सब इन्तजाम और असुरक्षा में खड़ा हो जाता है । बड़ी कठिन बात है मन को इस बात के लिए राजी करना कि 'असुरक्षा में खड़े हो जाओ, मत करो इन्तजाम ।'
मलूक ने कहा है कि पंछी काम नहीं करते, अजगर चाकरी नहीं करता, सबको देने वाले हैं राम । समझी नहीं गई बात । लोगों ने समझा कि बड़े आलस्य की बात सिखाई जा रही है । इसका मतलब हुआ कि कोई कुछ न करे और जैसे पक्षी और अजगर पड़े हैं, ऐसा पड़ा रह जाए । तब तो सब सन्म हो जाए । लेकिन मलूक कुछ आलस्य की बात नहीं कर रहा है । वह कह रहा है कि करो या न करो, भीतर से जैसा पक्षी असुरक्षित है, कि कल का कोई पता नहीं, सांझ का कोई भरोसा नहीं, जैसे अजगर असुरक्षित पड़ा है, कोई इन्तज़ाम नहीं, कोई सुरक्षा नहीं - ऐसा भी चित्त हो सकता है, और जब ऐसा चित्त हो जाता है तो फिर राम ही हो जाता है सहारा, फिर कोई सहारा नहीं