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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२१
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कुछ नहीं बोला। अभी वह बड़ा चिल्ला-चिल्ला कर बोल रहा था। मैंने कहा : बोलते क्यों नहीं ? उसने कहा : हा ! मैं मर जाऊंगा। मैंने कहा : इसमें हमें कोई एतराज ही नहीं है। कौन किसको रोक सकता है ? आज रोकेंगे, कल मर जाओगे । इसलिये रोकें भी क्यों? दरवाजा खोलो। मरने वाले क्या ऐसा दरवाजा बन्द करके भयभीत दिखाई पड़ते हैं ? एक ही तो भय है जिन्दगी में मर न जाएं, मौर तो कोई भय ही नहीं। और तुमने जब वह भय भी त्याग दिया तो अब तुम किससे डर कर अन्दर बन्द हो। दरवाजा खोलो। उसने दरवाजा खोला
और मुझे नीचे से ऊपर तक ऐसा देखा जैसे मैं उनका दुश्मन है। मैंने कहा : तुम मेरे साथ गाड़ी में बैठ जाओ, चलो। उसने कहा : कहाँ जाना है ? मैंने कहा : भेड़ाघाट जबलपुर में अच्छी जगह है मरने के लिए। समझदार आदमी कम से कम मरने के लिए अच्छी जगह तो चुन ले। नासमझ तो जिन्दा रहने के लिए भी अच्छी जगह नहीं चुनता। तो तू भेड़ाघाट मर। और मैं तेरा मित्र रहा इतने दिन तक तो मेरा कर्तव्य है कि तुझे आखिरी विदा करने जाऊँ। यानी मित्र का यही मतलब है कि जो हर वक्त काम आए । इस वक्त कोई तेरे काम नहीं पड़ेगा, इस वक्त मैं ही तेरे काम पड़ सकता है। समझने लगा कि यह आदमी पागल हो गया है। लेकिन अब मुझसे कहने की कोई हिम्मत न रही। क्योंकि अब धमकी देने का कोई सवाल न था कि मर जाऊँगा । यह धमकी तो बेमानी थी।
वह चुपचाप चला आया। रात हम सोए। दोनों तरफ बिस्तर लगा कर, एक बीच में अलार्म घड़ो रखकर मैंगे कहा कि ठंडी रात है और हो सकता है कि मेरी नींद न खुले । और अलार्म बजे तो तुम कृपा करके मुझे उठा देना क्योंकि तीन बजे हमें निकल चलना है। एक घंटे का रास्ता है। तुम वहाँ कूद जाना। मैं अन्तिम नमस्कार करके लोट आऊँगा और मुझे फिर वापस भी आना है । और भोर होने के पहले आना चाहिये नहीं तो तुम मरोगे, फैसूगा मैं। तो तीन बजे ही ठीक होगा। सब बातें वह मेरी ऐसे सुनता रहा चौंक कर लेकिन वह मुझसे कुछ कहता नहीं था। रात हम सो गए। अलार्म बजा। उसने जल्दी से बन्द किया। जब मैं हाथ ले गया तो वह अलार्म बन्द कर रहा था। उसका हाथ मैंने अपने हाथ में ले लिया। मैंने कहा : ठीक है अब मेरी भी नींद खुल गई है। उसने कहा लेकिन अभी मुझे बहुत ठंड मालूम हो रही है। मैंने कहा । यह तो जोने वालों को भाषा है। ठंड मालूम होना, गरमो मालूम होना, यह कोई मरने वालों के स्याल नहीं है। ठंड का क्या मतलब है ? यह बाखिरी ठंड है। घंटे