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महावीर : मेरी दृष्टि में
भर का सवाल है । सब खत्म । ओर मुझे वापस भी लोटना है। मैंने उससे कहा कि ठंड तो मुझे लगेगी क्योंकि तू जब डूब जाएगा तब मुझे वापस भी फिर आना है।
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वह एकदम गुस्से में बैठ गया और बोला कि आप मेरे दोस्त हो कि दुश्मन ? आप मेरी जान लेना चाहते हो; मैंने आपका क्या बिगाड़ा है ? मैंने कहा : मैं तुम्हारी जान नहीं लेना चाहता हूँ और न तुमने मेरा कभी कुछ बिगाड़ा है । लेकिन अगर तुम जीना चाहते हो तो मैं जीने में साथी हो जाऊंगा । अगर तुम मरना चाहते हो तो मैं उसमें साथी हो जाऊँगा । मैं तुम्हारा साथी हूँ । तुम्हारी क्या मर्जी है । उसने कहा मैं जीना चाहता है । मैंने कहा, तो इतना शोरगुल क्यों मचा रहे थे ?
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अब इस आदमी को क्या हुआ ? देखिए । यह आदमी अब भी जी रहा है ! और जब भी मुझे मिलता है तो कहता है : आपने मुझे बचाया है, नहीं तो मैं मर जाता । वे सारे बाहर के लोग मुझे मारने की तैयारी करवा रहे थे । वे जितना मुझे बचाने की बातें करते उतना मेरा जोश बढ़ता चला जाता। आदमी के मन को समझना बड़ा मुश्किल है, एकदम मुश्किल है । और यह भी समझना मुश्किल है कि किस भाँति आदमी का चित्त काम करता है ।
क्यों महावीर किसी को रोकते हैं, किसी को नहीं रोकते हैं, इसे एकदम ऊपर से नहीं पकड़ लेना है । इसे बहुत भीतर से देखना चाहिए कि महावीर के लिएं क्या कारण हो सकता है । करुणा उनकी समान है । लेकिन व्यक्ति भिन्नभिन्न है। रोकना किसके लिए सार्थक होगा, किसके लिए नहीं सार्थक होगा, यह भी वह जानते हैं । कौन रोकने से रुकेगा, कौन रोकने से बढ़ेगा यह भी वह जानते हैं। कौन किस कारण से बढ़ रहा है, यह भी वह जानते हैं । इसलिए हो सकता है कि दो व्यक्तियों को नहीं, दो सौ व्यक्तियों को भी न रोकते । एक एक व्यक्ति भिन्न-भिन्न है । उनकी सारी व्यवस्था भिन्न-भिन्न है । और उस व्यक्ति को अगर हम गौर से देखेंगे तो उस व्यक्ति के साथ हमें भिन्न-भिन्न व्यवहार करना पड़ेगा । इसका यह मतलब नहीं है कि मैं भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के साथ भिन्न-भिन्न हो जाता हूँ। मैं न भी भिन्न-भिन्न होऊं तब भी प्रत्येक व्यक्ति भिन्न है, और उसे देख कर मुझे कुछ करना जरूरी है ।
फिर और भी बहुत सी बातें महावीर देखते हैं, जो कि साधारणतः नहीं देखी जा सकतीं। उनकी मैं इसलिए बात नहीं करता है कि वह एकदम अदृश्य