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महावीर पर इतने दिनों तक आनन्दपूर्ण बात की। यह ऐसे ही था जैसे मैं अपने सम्बन्ध में बात कर रहा है : पराये के सम्बन्ध में बात नहीं की जा सकती। दूसरे के सम्बन्ध में कुछ कहा नहीं जा सकता। अपने सम्बन्ध में हो सत्य कहा जा सकता है। अब महावीर पर इस भौति मैंने बात नहीं की जैसे वे कोई दूसरे और पराये हैं। जैसे हम अपने आन्तरिक जीवन के सम्बन्ध में ही बात कर रहे हों ऐसा ही मैंने उन पर बात की है। उन्हें केवल निमित्त माना है और उनके चारों ओर उन सारे प्रश्नों पर चर्चा की है जो प्रत्येक साधक के मार्ग पर अनिवार्य रूप से खड़े हो जाते हैं । महत्त्वपूर्ण भी यही है । ___ महावीर एक दार्शनिक की भांति नहीं हैं। वे एक सिड, एक महायोगी हैं। दार्शनिक तो बैठकर विचार करता है जीवन के सम्बन्ध में । योगी जीता है जीवन में । दार्शनिक पहुँचता है सिद्धान्तों पर, योगा पहुंचता है सिद्धावस्था पर । सिद्धान्त बातचीत है, सिद्धावस्था उपलब्धि है। महावीर पर ऐसी ही बात को है जैसे वे कोई मात्र कोरे विचारक नहीं है । और इसलिए भी बात की है कि जो इस बात को सुनेंगे, समझेंगे, वे भी जीवन में कोरे विचारक न रह जाएं। विचार अद्भुत है लेकिन पर्याप्त नहीं । विचार कीमती है, लेकिन कहीं पहुंचाता नहीं। विचार से ऊपर उठे बिना कोई भी व्यक्ति आत्म-उपलब्धि तक नहीं पहुंचता है।
महावीर कैसे विचार से उठे, कैसे ध्यान से, कैसी समाधि से ये सब बातें हमने की, कैसे महावीर को परम जीवन उपलब्ध हुमा और कैसे परम जीवन की उपलब्धि के बाद भी वे अपनी उपलब्धि की खबर देने वापिस लौट आएऐसी करुणा की भी हमने बात की। जैसे कोई नदी सागर में गिरने के पहले