Book Title: Mahavira Meri Drushti me
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Jivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 658
________________ परिसि-1 बहिंसा स्वयं भाचरण नहीं है। इस घर में हम दिए को जलाएं तो खिड़कियों के बाहर भी रोशनी दिखाई पड़ती है। लेकिन दिया सिरकी के बाहर दिखाई पड़ती रोशनी का ही नाम नहीं है। दिया जलेगा तो खिड़की से रोशनी भी दिखाई पड़ेगी। अब उसके पीछे पाने वाली घटना है जो अपने बाप घट जाती है। एक आदमी गेहूँ बोता है तो गेहूँ के साथ भूसा अपने बाप पैदा हो जाता है, उसे पैदा नहीं करना पड़ता। लेकिन किसी को भूसा पैदा करने का ख्याल हो और वह भूसा बोने लगे तो फिर कठिनाई शुरू हो जाएगी। बोया गया भूसा मो सड़ जाएगा, नष्ट हो जाएगा। उससे भूसा तो पैदा होने वाला ही नहीं। गेहे बोया जाता है, भूसा पीछे से अपने-आप साथ-साथ बाता है। अहिंसा वह अनुभव है, वह आवरण है जो पीछे से अपने आप आता है, लाना नहीं पड़ता। जिस आचरण को लाना पड़े वह भाचरण सच्चा नहीं है। मोबावरण पाए, उतरे, प्रकट हो, फले, पता भीमबले, सहम वही माचरण सत्य है । तो दूसरी बात यह है कि आवरण को साध कर हम अहिंसा को उपलब्ध न हो सकेंगे। हिंसा पाए तो आचरण भी बा सकता है। फिर महिसा कैसे जाए? हमें सीधा-सरल यही दिखाई देता है कि जीवन को एक व्यवस्था देने से अहिंसा पैदा हो जाएगी। लेकिन अमल में जीवन को व्यवस्था देने से अहिंसा पैदा नहीं होती। पित्त के पान्तरण से महिसा पैदा होती है। और यह रूपान्तरण कैसे आए, इसे समझने के लिए दो-तीन बातें समझनी उपयोगी होंगी। पहला तो यह शब्द अहिंसा बहुत अद्भुत है । यह शब्द बिल्कुल नकारात्मक है। महावीर प्रेम शब्द का भी प्रयोग कर सकते थे, नहीं किया। जीसस को प्रेम शब्द का प्रयोग करते हैं। शायद प्रेम शब्द का प्रयोग करने के कारण ही जीसस जल्दी समझ में बाते है बजाय महावीर के । महावीर निषेषात्मक शब्द का. प्रयोग करते है । अहिंसा में वह कहना चाहते हैं 'हिंसा नहीं है।' वह और कुष भी नहीं कहना चाहते । हिंसा न हो जाए तो जो शेष रह जाएगा, वह हिंसा होगी । अहिंसा को लाने का सवाल ही नहीं है। वह उस शब्द में ही छिपा है। अहिंसा को विषायक प से लाने का कोई सवाल ही नहीं है, कोई उपाय हो इसे बार एक तरह से देखना परी है। हिसा और अहिंसा विरोधी नहीं है। प्रकास वोर अंधकार विरोधी नहीं है। मगर प्रकाश बोर अंधकार विरोधी

Loading...

Page Navigation
1 ... 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671