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पक्षिर
दूसरी बार पापोकात दिवा पूछी, वहकिकुरणकोहो विवेका और साप में यह भी पूछा कि में बताऊंना जे फिर वह वास्व हो पाया। बिल्कुल ठीक है। बबर मेरे बताने के कारण आप उस पर पलेंगे तो आप शास्त्र पर पले । लेकिन अपने विवेक के कारण अगर बाप उस परुपले तो शास्त्र यहीं पड़ा रह गया। जैसे मुझसे कोई पूछे कि तैरना कैसे ? क्या उपाय है ? तो मैं कहूंगा कि तैरने का कोई उपाय नहीं होता सिवाय तैरने के । लेकिन एक बादमी अगर कहे कि में नदी में तभी उतरूंगा जब मैं तैरना सीख जाऊंगा क्योंकि बिना तैरना सीखे कसे उतरू तो वह तर्कयुक बात कह रहा है। बिना तैरना सीखे उसे नदी में उतरना खतरे से भरा है। लेकिन सिखाने वाला कहेगा कि जब तक उतरोगे नहीं तब तक तैर भी नहीं सकोगे। तैरना भी सीखना हो तो पानी में उतरना होगा। लेकिन पहली बार पानी में उतरना तड़फड़ाना ही होगा, तैरना नहीं हो सकता । असल में तैरना क्या है ? तड़फड़ाने का व्यवस्थित रूप है । पहले तड़फड़ाएंगे, फिर तड़फड़ाने में तकलीफ होगी तो व्यवस्थित हो जाएंगे। धीरे-धीरे बाप पाएंगे कि तैरना ना गया, तड़फड़ाना चला गया । तैरना तड़फड़ाने का ही व्यवस्थित रूप है । मादमी पहले दिन पानी में पटकने से ही तैरता है । फिर बाद में जो विकास होता है, वह उसके अपने तैरने के अनुभव से होता है,
तो मैं आपको क्या कई कि विवेक कैसे जगे? विवेक को जगाना हो तो विवेक करना होगा; तैरना सीखना है तो तेरना शुरू करना होगा। और कोई उपाय नहीं है । रास्ते पर चलते, खाना खाते, बात करते, सुनते, उठते, बैठते विवेकपूर्ण होना होगा। लेकिन ठीक माप पूछते हैं कि जो मैं कर रहा हूँ और मेरी बात जब मैंने समझाई तो शास्त्र हो गई । मगर यह ध्यान में रखना जरूरी है कि बात समझाने से शास्त्र नहीं होती, बात आपके माने से बाल होती है। अगर मैंने कहा कि बात किसी तीर्थकर ने कही है, किसी सश ने कही है,
और मापने कहा कि ऐसे व्यनि ने कही है जो बानता है और 'मूल नहीं करता फिर वह शास्त्र बन जाती है, नहीं तो किताब ही रह जाती है।
किताव और शास्त्र में फर्क है। जो किताव पागल हो जाता है यह शास्त्र है। बोक्सिब पवा करने ममती है वह बाल बन जावी है। मैं किताबों का दुष्मन नहीं है, शास्त्र का दुश्मन है। किसानो सानी पाहिए.बी अदभुत है, बड़ी जरूरी है। किवा के बिना नुकसान हो जाएगा। लेकिन शास्त्र बड़े सबरनाक है। पर कोई : किसान पवा करती है कि मैं परम सत्य है और को