Book Title: Mahavira Meri Drushti me
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Jivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai

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Page 663
________________ महावीर मेरी दृष्टि में भावना से दूसरे की छाती पर बैठ सकती है, इस अहंकार की दूसरे की फांसी बना सकता है, इसकी पूरी सम्भावना है। • इसलिए महावीर अहिंसा की विधायक साचना का कोई प्रश्न ही नहीं उठाते। बात बिल्कुल दूसरी है उनके हिसाब से उनके हिसाब से बात यह है कि मैं हिंसक हूँ, दूसरे को दुःख देने में मुझे सुख मालूम होता है; दूसरे के सुख से भी दुःख मालूम होता है । यह हमारी स्थिति है, यहाँ हम खड़े हैं । अब क्या किया जा सकता है ? ऐसे आचरण को क्षीण किया जाए जो दूसरे का अहित करता हो, और ऐसे आचरण को प्रस्तावित किया जाए जो दूसरे का मंगल करता हो । एक रास्ता यह है । इस रास्ते को मैं नैतिक कहता है मोर नैतिक व्यक्ति कभी पूरे. अर्थी में अहिंसक नहीं हो सकता । ७७२ गांधी जी को मैं नैतिक महापुरुष कहता हूँ, धार्मिक महापुरुष नहीं । शायद उन पैसा नैतिक व्यक्ति हुआ भी नहीं। लेकिन वह नैतिक ही हैं। उनकी अहिंसा नैतिक तल पर है। महावीर नैतिक व्यक्ति नहीं है। महावीर धार्मिक व्यक्ति है । और धार्मिक व्यक्ति से मेरा क्या प्रयोजन है ? धार्मिक व्यक्ति से मेरा प्रयोजन है ऐसा व्यक्ति जिसने अपनी हिंसा को जाना-पहचाना और जिसने अपनी हिंसा के साथ कुछ भी नहीं किया, जो अपनी हिंसा के प्रति पूरी तरह ध्यानस्थ हुमा, जागृय हुआ, जिसने अपनी हिंसा की कुरूपता को पूरा-पूरा देखा और कुछ भी नहीं किया । तो मेरी दृष्टि ऐसी है कि अगर कोई व्यक्ति अपने भीतर की हिंसा को पूरी तरह देखने में समर्थ हो जाए और उसे पूरा पहचान से, उसके अणु-परमाणुओं को पकड़ ले, उठने-बैठने चलने में, मुद्रा में जो हिंसा है उस सबको पहचान ले, जान ले, साक्षी हो जाए, विवेक से भर जाए तो वह व्यक्ति अचानक पाएगा कि जहाँ-जहाँ विवेक का प्रकाश पड़ता है हिंसा पर वहाँ-वहाँ हिंसा बिदा हो जाती है, उसे बिदा नहीं करना होता । वह वहाँ से क्षीण हो जाती है, समाप्त हो जाती है । न उसे बढ़ाना पड़ता है, न उसे बदलना पड़ता है । सिर्फ चेतना जैसे सुबह सूरज निकले और मोस के समक्ष आते वह वैसे हो बिदा हो जाती है बिदा होने लगे । वह ओसकण विदा होते हैं सूरज के निकलते ही, उन्हें बिदा करना नहीं होता । जतने ताप को वह झेलने में असमर्थ है। चेतना का एक ताप है। महावीर बिसे तर कुड़ते हैं, वह चेतना का साथ है। बगर चेतना पूरी की पूरी व्यक्ति के प्रति जागरूक हो जाए तो व्यक्तित्व में जो भी कुरूप है वह रूपान्तरित होता शुरू हो जाएगा। उसे रूपास्तरित करता नहीं होगा 11

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