Book Title: Mahavira Meri Drushti me
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Jivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai

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Page 666
________________ परिशिष्ट ७८९ एक मित्र यह पूछते है कि विवेक के लिए विवेक के प्रति जागना क्या अपनी बविवेक बुद्धि के साथ प्रतिहिंसा न होगी। फिर आप मेरे विवेक का मतलब नहीं समझे । मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि विवेक से अविवेक को काटें। अंगर का तो हिंसा होगी। मैं तो यह कह रहा है कि आप सिर्फ विवेक में जागें। कुछ है जो कट जाएगा, कट जाएगा इस अर्थ में कि वह था ही नहीं, आप सोए हुए थे इसीलिए था, अन्यथा वह गया। कटेगा भी कुछ नहीं, अंधेरा कटेगा पोड़े ही दिए के जलाने से। इसलिए अंधेरे के साथ कभी भी हिंसा नहीं हुई है। वह नहीं रहेगा बस। विवेक जगेगा और अविवेक चला जाएगा। इसमें में हिंसा नहीं देख पाता है जरा भी । आप यह कहते है कि यह तो ठीक दिखाई पड़ता है कि दिएको जलाया और अंधेरा चला गया। इसको हम सच मान सकते है क्योंकि यह हमारा अनुभव है। दूसरे को कैसे सच मानें ? मैं कहता ही नहीं कि मानें। अनुभव हो जाएगा तो मान लेंगे। इसको मैं कहता भी नहीं कि माने मैं कहता हूँ कि आप प्रयोग करके देखें। यदि संशय सच में ही जगा है तो प्रयोग करवा कर ही रहेगा। तभी संशय सच्चा है। तो प्रयोग करके देख लें। विवेक जग जाए और अगर अहिंसा रह जाए तो समझना कि मैं जो कहता था, सत्य नहीं कहता था। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है और न हो सकता है।

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