Book Title: Mahavira Meri Drushti me
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Jivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai

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Page 641
________________ ૭૪૬ लीट कर देखे एक क्षण को, ऐसे ही महावीर ने अपनी अनन्त जीवन की यात्रा के अन्तिम पड़ाव पर पीछे लौट कर देखा है । लेकिन उनके पीछे लौटकर देखने को केवल वे ही लोग समझ सकते हैं, जो अपने जीवन की अन्तिम यात्रा की ओर आगे देख रहे हैं । महावीर पीछे लौटकर उन्हें देखें लेकिन हम उन्हें तभी समझ सकते हैं जब हम भी अपने जीवन के आगे के पड़ाव की ओर देख रहे हों । अन्यथा महावीर को नहीं समझा जा सकता । महावीर : मेरी दृष्टि में · साधारणतः महावीर को दो हजार पाँच सौ वर्ष हुए। वह अतीत की घटना है । इतिहास यही कहेगा । मैं यह नहीं कहूँगा । साधक के लिए महावीर भविष्य की घटना है । उसके जीवन में आने वाले किसी क्षण में वह वहाँ पहुँचेगा जहाँ महावीर पहुँचे हैं । और जब तक हम उस जगह न पहुँच जाएँ तब तक महावीर को समझा नहीं जा सकता है। क्योंकि उस अनुभूति को हम कैसे समझेंगे जो अनुभूति हमें नहीं हुई है । अन्धा कैसे समझेगा प्रकाश के सम्बन्ध में । और जिसने कभी प्रेम नहीं किया वह कैसे समझेगा प्रेम के सम्बन्ध में । • हम उतना ही समझ सकते हैं जितने हम हैं, जहाँ हम हैं । हमारे होने की स्थिति से हमारी समझ ज्यादा नहीं होती । इसलिए महापुरुष के प्रति अनिवार्य होता है कि हम नासमझी में रहें। महापुरुष को समझना अत्यन्त कठिन है बिना स्वयं महापुरुष हुए। जब तक कि कोई व्यक्ति उस स्थिति में खड़ा न हो जाए जहाँ कृष्ण है, जहाँ क्राइस्ट है, जहाँ मुहम्मद हैं, जहाँ महावीर हैं तब तक हम समझ नहीं पाते । और जो हम समझते हैं वह अनिवार्य रूपेण भूल भरा होता है । इसलिए एक बात ध्यान में रखनी चाहिए । I महावीर को समझना हो तो सीधे ही महावीर को समझ लेना सम्भव नहीं है । महावीर को समझना हो तो बहुत गहरे में स्वयं को समझना और रूपान्तरित करना ज्यादा जरूरी है। लेकिन हम तो शास्त्र से समझने जाते हैं और तब भूल हो जाती है। शब्द से, सिद्धान्त से, परम्परा से समझने जाते हैं तब भूल हो जाती है । हम तो स्वयं के भीतर उतरेंगे तो उस जगह पहुँचेंगे जहाँ महावीर कभी पहुँचे हों । तभी हम समझ पाएंगे । 1 मैंने जो बातें कीं इन दिनों में, उन बातों का शास्त्रों से कोई सम्बन्ध नहीं है । इसलिए हो सकता है कि बहुतों को वे बातें कठिन भी मालूम पड़ें, स्वीकारयोग्य भी न हों, जिनकी शास्त्रीय बुद्धि है; उन्हें अत्यन्त अजीब मालूम पड़ें और वे शायद पूछें कि शास्त्रों में यह सब कहीं है तो उनसे मैं पहले ही कह देना

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