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महाबीर : मेरी दृष्टि में पैसा हुआ लेकिन इससे अन्यथा हो सकता था। सत्य का मतलब है जैसा हो सकता है, जिससे अन्यथा कोई उपाय नहीं है। महावीर, बुद्ध, जीसस इन जैसे लोगों के प्रति इतिहास की फिक्र नहीं करनी चाहिए। इतिहास इतनी मोटी बुद्धि की बात है कि ये बारीक लोग उससे निकल ही जाएं, पस में हो न आएं। उन्हें तो किसी और आंख से देखने की जरूरत है, सत्य की भांख से । और उस बांख से देखने पर बहुत सी बातें उद्घाटित होंगी जो शायद इविहास नहीं पकड़ पाया है। और इसलिए मैंने जो कहा है और आगे भी कृष्ण, बुद्ध, कनफ्यूसियम, मामोत्से और क्राइस्ट के सम्बन्ध में जो कहूंगा, उसका ऐतिहासिक होने से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसलिए जिनको ऐतिहासिक बुद्धि हो उनसे कोई झगड़ा ही नहीं है, उनसे कोई विवाद ही नहीं है। जगत् को एक कवि की दृष्टि से भी देखा जा सकता है और तब जगत् इतने रहस्य खोल देता है जितने इतिहास की दृष्टि से देखने वालों के सामने उसने कभी भी नहीं खोले हैं।
काव्य का अपना दर्शन है। चूंकि वह ज्यादा प्रेम से भरा है इसलिए ज्यादा सत्य के निकट है। शास्त्र उससे मेल भी पड़ सकते है, बेमेल भी पड़ सकते है। चूंकि हमें ख्याल में नहीं रहा है इसलिए जिन लोगों ने बतीत में इन सारे महापुरुषों की गाथाएं लिखी है उनको समझना मुश्किल हो गया। क्योंकि उन गाथाओं को लिखते वक्त भी सत्य पर दृष्टि ज्यादा थी, तथ्य पर बहुत कम । तय तो रोज बदल जाते हैं। सत्य कमी नहीं बदलता। इतिहास तथ्यों का लेखा-जोखा रखता है। सत्य का लेखा-जोखा कौन रखेगा? इसलिए जिनको सत्य को बहुत फिक थी उन्होंने इतिहास लिखा तक नहीं। यह बात बेमानी पी कि कौन आवमी कब पैदा हुमा, किस तारीख में, किस तिथि में । यह बात बेमानी थी कि कौन आवमी कब मरा। यह बात भी अर्थहीन थी कि कान भावमी कब उठा, कब चला, कब क्या किया। महत्त्वपूर्ण तो वह अन्तर्घटना थी जिसने सत्य के निकट पहुंचा दिया और सत्य उस घटना को प्रकट कर सके, ऐसी पूरी की पूरी व्यवस्था की । व्यवस्था बिल्कुल ही काल्पनिक हो सकती है तो भी कठिनाई नहीं है। इतिहास बिल्कुल ही वास्तविक है तो भी व्यर्थ हो सकता है।
इतिहास यह है कि जीसस एक बई के बेटे थे। और सत्य यह है कि वे ईघर के पुत्र है। इतिहास खोजने जाएगा तो बढई के बेटे से ज्यादा क्या खोज पाएगा? मेकिन जिन्होंने जीसस को देखा उन्होंने जाना कि परमात्मा के बेटे है।यह किसी और आंख से देखी गई बात है बीर इन दोनों बातों में तालमेल