Book Title: Mahavira Meri Drushti me
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Jivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai

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Page 645
________________ महावीर। मेरी बुधि पड़तीं। पुराने महापुरुषों का जो अनुयायी है उसने धारणाएं बना रखी हैं जिन्हें वह महावीर पर कसने की कोशिश करता है। महावीर उस पर नहीं उतर पाते इसलिए व्यर्थ हो जाता है। लेकिन महावीर का अनुयायी वही बातें बुद्ध पर कसने की कोशिश करता है और तब फिर मुश्किल हो जाती है। हमारा चित्त अगर पूर्वाग्रह से भरा है, महापुरुष तो दूर एक छोटे से व्यक्ति को भी हम प्रेम नहीं कर सकते । एक पलो पति को प्रेम नहीं कर पाती क्योंकि पति कैसा होना चाहिए, इसकी धारणा पक्की मजबूत है। एक पति पत्नी को प्रेम नहीं कर पाता क्योंकि पत्नी कैसी होनी चाहिए, शास्त्रों से सब उसने सीख कर तैयार कर लिया है और वही अपेक्षा कर रहा है। वह इस व्यक्ति को, जो सामने पत्नी या पति की तरह मौजूद है, देख ही नहीं रहा। मैंने जो बातें महावीर के सम्बन्ध में कही है, उन पर मेरा कोई पूर्वाग्रह नहीं है। किन्हीं सूचनाओं के, किम्ही धारणाओं के, किन्हीं मापदण्डों के आधार पर मैंने उन्हें नहीं कसा। मेरे प्रेम में वह जैसे दिखाई पड़ते हैं, वैसी मैने बात को । दौर जरूरी नहीं है कि मेरे प्रेम में वे जैसे दिखाई पड़ते है वैसे आपके प्रेम में भी दिखाई पड़ते हों। मगर वैसा भी मैं बाग्रह करूं तो मैं फिर आपसे धारणाओं की अपेक्षा कर रहा है। मैंने अपनी बात कही जैसा वे मुझे दिखाई पड़ते हैं, जैसा मैं उन्हें देख पाता है। और इसलिए एक बात निरन्तर ध्यान में रखनी जरूरी होगी कि महावीर के सम्बन्ध में जो भी मैंने कहा है, वह मैंने कहा है । और मैं उसमें अनिवार्य रूप से उतना ही मौजूद है जितने महावीर मौजूद है। वह मेरे और महावीर के बीच हुआ लेन-देन है। उसमें अकेले महावीर नहीं है। उसमें अकेला में भी नहीं है। उसमें हम दोनों हैं । और इसलिए बिल्कुल ही असम्भव है कि जो मैंने कहा है ठीक बिल्कुल वैसा ही किसी दूसरे को भी दिखाई पड़े। मैं किसी दूर वस्तु की तरह बड़े हुए व्यक्ति की बात नहीं कर रहा है। मैं तो उस महावीर की बात कर रहा हूं जिसमें मैं भी सम्मिलित हो गया हूं, जो मेरे लिए एक बात्मगत अनुभूति बन गया है। जो मेरी बात को पढ़ेंगे उन्हें समझने में बहुत कठिनाई और मुश्किल हो सकती है। सबसे बड़ी मुश्किल यह होगी कि वे उस जगह खड़े नहीं हो सकते, पहा में बड़े होकर देख रहा हूं। लेकिन इतनी ही उनकी कृपा काफी होगी किनकी चिन्ता न करें। एक व्यक्ति ने एक जगह बड़े होकर कैसे महावीर को देखा है, यह समक्ष भर लें। और फिर अपनी जगह से बड़े होकर देखने की

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