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म.
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कि हमारा प्राण
व्यक्ति, जैसे दो नदियाँ हैं, संगम पर आकर घुल-मिल जाए और तय करना मुश्किल हो जाए कि कौन-सा पानी किसका है, ऐसा ही मिलता हुआ है । और मैं मानता है कि ऐसा मिलना हो तो ही नदी को पहचान प्रातां है, नहीं तो पहचान नहीं प्रदा । और इसलिए इस निवेदन के साथ महावीर की जड़ प्रतिमा को, मृत प्रतिमा को शब्दों से निर्मित रूपरेखा को मैंने बिल्कुल ही अलग छोड़ दिया है। मैंने एक जीवित महावीर को पकड़ने की कोशिश की है और यह कोशिश तभी सम्भव है जब हम इतने गहरे में प्रेम दे सकें उनके प्राण से एक हो जाए तो ही वे पुनर्जीवित हो सकते हैं। जब भी कोई व्यक्ति कृष्ण, बुद्ध, महावीर के निकट पहुँचेगा तब पहुंचना पड़ेगा। उसे फिर प्राण डाल देने पड़ेंगे। अपने ही प्राण ही उसे दिखाई पड़ सकेगा कि क्या है लेकिन फिर भी इस बात को निरन्तर ध्यान में रखने की जरूरत है कि यह एक व्यक्ति के द्वारा देखे गए महावीर की बात है— दूसरे व्यक्ति को इतनी ही परम स्वतंत्रता है कि वह और तरह से देख सके और इन दोनों में न कोई विरोध की बात है, न कोई संघर्ष की बात है और न किसी विवाद की कोई जरूरत है ।
और प्रत्येक बार
उसे ऐसे ही उड़ेल देगा तो
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आप पूछते हैं कि जो मैंने कहा उसके लिए क्या हो सकता है ? और मैं शास्त्रों के आधार को
शास्त्रों के सिवाय आधार भी पूर्णतः निषेध करता है ।
बहुत सी बातें उसने कहीं है ऐसे वक्तव्य भी दिए हैं जिनका कहीं भी
'जोड़ सेना ।'
फकीर था एक बोकोजू । बुद्ध के सम्बन्ध में जो शास्त्रों में नहीं हैं । और बहुत से कोई उल्लेख नहीं हैं। पंडित उसके पास आए शास्त्र लेकर और कहा कि कहीं हैं बुद्ध की ये बातें ? शास्त्रों में ये नहीं हैं । तो बोकोजू ने कहा, किन्तु उन्होंने कहा, 'बुद्ध ने यह कहा ही नहीं है।' तो बोकोजू मिलें तो उनसे कह देना कि बोकोजू ऐसा कहता था कि कहा है। और न कहा हो तो कह देंगे । यह बोकोजू अद्भुत आदमी रहा होगा। और बुद्ध से कहलवाने की हिम्मत किसी बड़े गहरे प्रेम से ही आ सकती है । या कोई साधारण हिम्मत नहीं है। यह उतने गहरे प्रेम से आ सकती है कि बुद्ध को सुधार करना पड़े ।
ने
कहा कि बुद्ध
एक और घटना मुझे स्मरण आती है। एक संत रामकथा लिखते थे और रोज शाम पढ़कर सुनाते थे। कहानी यह है कि हनुमान तक उत्सुक हो गए इस कथा को सुनने के लिए अब हनुमान का तो सब देखा हुवा था लेकिन