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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२१
मानों की एक दृष्टि है, दर्शन नहीं। अगर दर्शन की हम बात करते है तो हिन्दू मुसलमान जैन-सब खो जाएंगे। वहां तो एक ही रह जाएगा। वहाँ कोई दृष्टि नहीं है, कोई विचार नहीं है। ___ महावीर का जो अनुभव है, वह तो समप्र है लेकिन अभिव्यक्ति समय नहीं हो सकती। जब भी हम कहने जाते हैं, तभी समग्र को हम कह नहीं सकते । परमात्मा का अनुभव तो बहुत बड़ी बात है। छोटे से, सरल अनुभव भी समग्ररूपेण प्रकट नहीं होते। आपने फूल को देखा। यह बहुत सुन्दर हैऐसा अनुभव किया । फिर आप कहने गए। फिर जब आप कहते हैं तो आपको लगता है कि कुछ बात अधूरी रह गई। यानी बहुत-बहुत सुन्दर है, ऐसा कहने पर भी पता नहीं चलता फूल जैसा था उसका। वह जो आपको अनुभव हुआ जीवन्त, वह जो आपका सम्पर्क हुआ फूल से, वह जो सौन्दर्य आप पर प्रकट हुआ, वह जो सुगन्ध आई, वह जो हवाओं ने फूल का नृत्य देखो, वह जो सूरज को किरणों ने फूल की खुशी देखी वह कितनी ही बार कहें कि बहुत-बहुत सुन्दर है तब भी लगता है कि बात कुछ अधूरी रह गई, कुछ बेस्वाद, बिना सुगन्ध को, मृत, मुर्दा रह गई। कुछ पता नहीं चलता। वह जो देखा था उसका कोई पता नहीं चलता। जब हम साधारण सी भी बात कहते हैं तो जो हमने अनुभव किया उसके वर्णनों में बहत कमी पड़ जाती है। और जब कोई असाधारण अनुभव को कहने जाता है, तब इतनो कमी पड़ जाती है जिसका हिसाब लगाना कठिन है । और दुनिया में जो सम्प्रदाय हैं, वह कही हुई बात पर निर्भर हैंजानी हुई बात पर नहीं। जानी हुई बात पर कभी सम्प्रदाय निर्मित हो जाएँ यह असम्भव है क्योंकि जो जाना गया है, वह भिन्न है ही नहीं।
एक बार ऐसा हुआ कि फरीद यात्रा कर रहा था। कुछ मित्र साथ थे। और कबीर का आश्रम निकट आया। फरीद के मित्रों ने कहा कि किटना अच्छा हो कि हम कबीर के पास दो दिन रुक जाएँ। आप दोनों की बातें होंगी तो हम धन्य हो जाएंगे। शायद हो जन्मों में ऐसा अवसर मिले कि कीर और फरीद का मिलना हो और लोग सुन लें। फरीद ने कहा कि तुम कहते हो तो हम जरूर रुक जाएंगे, लेकिन बात शायद ही हो। उन्होंने कहा लेकिन बात क्यों नहीं होगी? फरीद ने कहा कि वह तो चलकर ठहरेंगे तो ही पता चल सकता है। कबीर के मित्रों को भी खबर लग गई और उन्होंने कहा कि फरीद निकलता है पर से, रोक लें। प्रार्थना करें हमारे आश्रम में रुक जाएं दो दिन । बाप दोनों की बातें होंमी तो कितना मानन्द होगा! कबीर ने कहा :