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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२१
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सकते हैं। बीच में एक गाय चाहिए जो पास को उस स्थिति में बदल दे जहाँ से वह आपके योग्य हो पाए। लेकिन पास ने भी कुछ किया है। उसने भी मिट्टी को बदला है और पास बन गया। पास बापके घर के भीतर है या बाहर? क्योंकि अगर घास न हो तो आपके होने की कोई सम्भावना नहीं है । और पास अगर न हो तो मिट्टी को खाकर गाय भी दूष नहीं बना सकती। और घास मिट्टी ही है लेकिन उस रूप में जहां से गाय उसका दूष बना सकती है और जहाँ से दूध आपका भोजन बन सकता है।
क्या हमारा घर है ? क्या हमारे घर के बाहर है ? अगर हम आंख खोल कर देखना शुरू करें तो हमें पता चलेगा कि सारा जीवन एक परिवार है, जिसमें एक कड़ी न हो तो कुछ भी नहीं होगा। जीवन मात्र एक परिवार है एक सामने पड़ा हुआ पत्थर भी किसी न किसी अर्थ में हमारे जीवन का हिस्सा है । अगर वह भी न हो तो हम नहीं कह सकते कि क्या होगा ? सब बदल सकता है। तो जिसको जीवन की इतनी विराटता का दर्शन हो जाएगा, वह कहेगा कि सभी सब है, सभी मेरे है, सभी अपने हैं या कोई भी अपना नहीं है। ये वो भाषाएं रह जाएंगी उसके पास । अगर वह विधायक ढंग से बोलेगा तो वह कहेगा : मेरा ही परिवार है सब और अगर वह निषेधात्मक ढंग से बोलेगा तो वह कहेगा कि 'मैं ही नहीं हूँ, परिवार कैसा ?' ये दो उपाय रह जाएंगे और ये दोनों उपाय एक ही अर्थ रखते हैं।
तो महावीर ने छोड़ा घर, परिवार यह बिल्कुल भूल है। असल में बड़े परिवार के दर्शन हुए, छोटा परिवार खो गया । और जिसको सागर मिल जाए, वह बूंद को कैसे पकड़े बैठा रहेगा ? बूंद को तभी तक कोई पकड़ सकता है जब तक सागर न मिला हो और सागर मिल जाए तो हम कहेंगे कि बूंद को आपने छोड़ा । असल में हमें सागर दिखाई नहीं पड़ता, सिर्फ बूंद ही दिखाई पड़ती है । बूंद को पकड़े हुए लोग, बूंद को छोड़ते हुए लोग ऐसे हमें दिखाई पड़ते हैं। हमें सागर नहीं दिखाई पड़ता। लेकिन जिसे सागर दिखाई पड़ जाए, वह कैसे बूंद को पकड़े रहे। तो बूंद को पकड़ना निपट अज्ञान हो जाएगा। ज्ञान विराट में ले जाता है, अज्ञान द्रशु को बांध कर पकड़ा देता है । अज्ञान क्षुद्र में ही रुक जाता है, शान निरन्तर विराट् से विराट् हो जाता है।
महावीर ने घर नहीं छोड़ा, घर को पकड़ना असम्भव हो गया। और इन दोनों बातों में फर्क हैं। जब हम कहते हैं कि घर छोड़ा तो ऐसा लगता है कि पर से कोई दुश्मनी है। और जब मैं कहता है कि घर को पकड़ना असम्भव