Book Title: Mahavira Meri Drushti me
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Jivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai

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Page 636
________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२५ ७४१ दूसरी दीवार इतने फासले पर है कि हम कभी सोच हो न पाते हों कि यह कमरा और यह दीवार उसी दीवार से जुड़े है और यह वही कमरा है। उसमें फासले बड़े हैं और आदमी की दृष्टि बड़ी छोटी है। ज्यादा देर तक वह देख नहीं पाता, उमे खबर नहीं हो पाती कि कब मैंने क्या बोया था, कब मैं क्या काट रहा है। यह दूसरी दीवार है। और ये दोनों एक हैं। , ___ आदमी को ठीक से दृष्टि मिल जाए दूर तक देखने को तो हम उसे अपने सुखों की आकांक्षा में घिरा हुआ पाएंगे। हमारे सब दुःख हमारे सुख की आशामों में हो पैदा किए गए हैं । हमारे सब दुःख हमने ही सुख की सम्भावनागों में बोए है। काटते वक्त दुःख निकलें, सम्भावनाएं सुख की हैं। बीज हमने दुःख के हो बोए हैं । इसे हम देखें, अपनी जिन्दगी में खोजें। अपने दुःख को देखें और पीछे लोट कर देखें कि हम कैसे उनको बोते चले आए हैं । और कहीं ऐसा तो नहीं कि आज भी हम वही कर रहे हैं। ___ आखिर यह दिखाई पड़ जाए तो तुम सुख की आशा को छोड़ दोगे। सुख की आशा एक दुराशा है, असम्भावना है। अगर ऐसा दिखाई पड़ जाए कि जीवन में सुख की सम्भावना ही नहीं है, दुःख ही होगा चाहे तुम उसे कितना ही सुख कहो, आज नहीं कल वह दुःख हो जाएगा। अगर जिन्दगी में दुःख की ही सम्भावना है तो सुख की आशा छूट जाती है । और जिस व्यक्ति की आशा छुट जाती है वह दुःख के साथ सीधा खड़ा हो जाता है। भागने का उपाय न रहा । यहां दुःख है, और यहां मैं हूँ और हम आमने-सामने है । और मजे की बात यह है कि जो बादमी दु ख के सामने खड़ा हो जाता है उसका दुःख ऐसे तिरोहित हो जाता है कि जैसे कभी था ही नहीं। तब दुःख नहीं जीत पाता क्योंकि तब दुःख के जीतने की तरकीब ही गई। तरकीब यो सुख की सम्भाबनामों में । दुःख के जीत को जो तरकीब थी, वह थी सुख को सम्भावना में। वह सुख को सम्भावना नहीं रही । दुःख यहां सामने खड़ा है और मैं यहां खड़ा हूँ और अब कोई उपाय नहीं है, न मेरे भागने का, न दुःख के भागने का। दुःख और हम है आमने-सामने । यह साक्षात्कार है। इस साक्षात्कार में जो रहस्यपूर्ण घटना घटती है वह यह है कि दुःख तिरोहित हो जाता है। मैं अपने में वापिस लोट आता हूं क्योंकि सुख पर जाने की चेष्टा छोड़ देता है। सुख में जाने का एक रास्ता था, वह रास्ता मैंने छोड़ दिया है। अब दुःख के सामने सीधा खड़ा हो गया है। अब यह एक ही रास्ता है कि मैं अपने में लौट बाऊं क्योंकि दुःख में तो कोई रह हो नहीं सकता, या तो सुख को बांशा में भागेगा या अपने पर लोट

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