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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२५
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बार-बार हम पछताते हैं कि यह दुःख क्यों ? दुःख हमें झेलना नहीं और बीर दुःख के ही बोते हैं। और इस द्वन्न में कितना समय हम व्यतीत करते है, कितने जन्म और कितने जीवन । लेकिन द्वन्द्व हमें दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि हमारी खूबी यह है, हमारा मजा यह है, हमारी आत्ववंचना यह है कि हम सिर्फ जो काटता है उस वक्त नाराज होते हैं कि यह कैसी चीज कटी । लेकिन जो हमने बोया है, हम उसका ख्याल हो नहीं करते।
अगर सही नहीं कटा है तो समझना कि सही नहीं बोया था। और दोनों के तारतम्य को समझ लेना जरूरी है ताकि कल हम सहो बोएं। जिस घाट पर उतरे हैं, वहाँ खतरा है हमारी नाव को लेकिन हम कल फिर उसी नाव पर बैठ गये हैं और दूसरे घाट पर उतरने को घटना फिर घटती है । और हैरानी यह है कि आवमी रोज-रोज वही-वही भूल करता है, नयी भूलें नहीं करता। नयी भूल भी कोई करे तो कहीं पहुंच जाएं। भूल भी पुरानो ही करता है। लेकिन कुछ ऐसा है कि पीछे जो हमने किया उसे हम भूल जाते हैं और फिर से हम वही सोचने लगते हैं।
एक आदमी ने अमेरिका में आठ विवाह किए। उसने पहला विवाह किया बड़ी आशाओं से जैसा कि सभी लोग करते हैं। लेकिन सब आशाएं महीने में मिट्टी में मिल गई। तो उसने सोचा कि औरत ठीक नहीं मिली जैसा कि सभी आदमी समझते है। उसकी सभो आशाएं धूमिल हो गई। तो उसने तलाक दे दिया। फिर साल भर लगाकर उसने दूसरी स्त्री बामुश्किल खोजी और वह अब बड़ा खुश था क्योंकि अब पहले अनुभव के बाद उसने खोज-बीन की थी। फिर उतनी आशाओं के साथ उसने पाया कि छः महीने में सब गड़बड़ हो गया है। तो उसने समझा कि फिर स्त्री ठीक नहीं मिली है।
इस बादमी ने आठ शादियां की जीवन में मोर हर बार यही हुआ। पाठवीं शादी के बाद वह एक मनोवैज्ञानिक के पास गया और कहा कि मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया है। में बाठ विवाह कर चुका और जिन्दगी गंवा चुका लेकिन हर बार वैसी की वैसो बोरस मिली। तब वैज्ञानिक ने कहा कि वह तो ठीक है लेकिन तुम्हारी खोजबीन का मापदण्ड क्या था? अगर कसोटी वह पी जिसने तुमने पहली बोच्च को कसा था तो कसौटी फिर भी वही रही होगी जिससे तुमने दूसरी बोरख को कसा और हर बार तुम उस टाइप की स्वीको खोज.काए जिस टाइप की स्त्री को हुम बोल सकते थे। तुम जिस तरह के