Book Title: Mahavira Meri Drushti me
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Jivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai

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Page 633
________________ महावीर : मेरी दृष्टि में अन्यथा यह कैसे हो सकता है कि जो नाव सुख के पाठ की जोर चली थी वह दुख के घाट पर पहुंच जाए। लेकिन हम यह कभी नहीं पूछते कि कहीं नाव हो तो दुःख को नहीं है। सवाल यह नहीं है कि आप कहां पहुंचेंगे। सवाल यह है कि आप कहां से चलते है, आप किस पर सवार है। यह सवाल ही नहीं कि फल कैसा होगा। सवाल यह है कि बीज कैसा बोया ? जीसस कहते हैं कि जो बोलोगे वही तुम फाटोगे लेकिन काटते वक्त पछताना मत । पछताना हो तो बोते वक्त । काटते वक्त पछताने का क्या सवाल ? फिर तो काटना ही पड़ेगा, लेकिन हम सब काटना कुछ और चाहते हैं, बोते कुछ और है। और यह जो द्वन्द्व है चित्त का कि बोते कुछ और हैं और काटना कुछ और चाहते हैं, हमें भटका सकता है अनन्त काल तक, अनन्त जन्मों तक, और इस भ्रम को तोड़ देने की जरूरत है-इससे जाग जाने की जरूरत है और एक सूत्र समझ लेने की जरूरत है कि जो हम बोते हैं वही हम काटते हैं। हो सकता है कि बीज पहचान में न आता हो । क्योंकि बीज जाहिर नहीं है, अप्रकट है, अभी अभिव्यक्त नहीं हुआ है। यहाँ एक बीज रखा है। हो सकता है न पहचान सकें कि इसका वृत्त कैसा होगा? क्योंकि बीज में वृक्ष है लेकिन दिखाई नहीं पड़ता। जीसस कहते हैं कि जो तुम बोते हो वही तुम काटते हो। मैं इससे उल्टी बात भी जोड़ देना चाहता हूँ कि जो तुम काटो समझ लेना कि वही तुमने बोया था क्योंकि हो सकता है कि बोते वक्त तुम न पहचान सके हो। बोते वक्त पहचानना जरा कठिन भी है क्योंकि बीज में कुछ दिखाई नहीं पड़ता साफसाफ । बीज क्या होगा ? जहर होगा कि अमृत होगा ? तो हो सकता है कि बोते बत भूल हो गई हो लेकिन काटते वक्त तो भूल नहीं हो सकती। हो सकता है कि नाव में बैठते वक्त ठीक से न समझ पाए हो कि नाव क्या है, लेकिन घाट पर उतरते वक्त तो समझ पाओगे कि घाट कैसा है। नाव ने कहाँ पहुँचा दिया है, यह तो समझ में आ जाएगा। तो काटते वक्त देख लेना। अगर दुःख कटा हो तो जान लेना कि दुःख पोया था और तब जरा समझने की कोशिश करना कि आगे दुःख के बीज को तुम पहचान सको कि वह कौन-कौन से बीज है बो दुःख ले आते हैं। कितनी पार हा दुःख,लाती है, कितनी बार वृणा दुःख लाती है, कितनी बार क्रोष दुस लाता है। लेकिन हम है कि फिर उन्हीं का बीज बोए चले जाते है। और

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