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प्रश्नोत्तर-प्रवचन- २५
मैं दस कदम और उठा लूंगा, परसों दस कदम और उठा लूंगा और यह रोज बढ़ता चला जाएगा ।
यह दुःख का छोटा सा बीज रोज वृक्ष होता चला जाएगा। इसमें और शाखाएँ निकलेंगी, इसमें और फल लगेंगे, इसमें और फूल लगेंगे । और न केवल फूल बल्कि एक बीज बहुत जल्दो वृक्ष होकर करोड़ बोज हो जाएगा । बीज गिरेंगे और वृक्ष उठेंगे और यह अन्तहीन फैलाव है। यानी एक बीज कितने वृक्ष पैदा कर सकता है, कोई हिसाब लगाए । शायद पृथ्वी पर जितने वृक्ष हैं उन्हें एक ही बीच पैदा कर सकता है । शायद सारे ब्रह्माण्ड में जितने वृक्ष हैं, एक ही बीज पैदा कर सकता है। एक बीज की फैलने की कितनी अनन्त सम्भावना है, इसको सोचने जाओगे तो एकदम घबड़ा जाओगे । अनन्त सम्भावना इसलिए है कि एक ही बीज करोड़ बीज हो सकता है । फिर प्रत्येक बीज करोड़ बीज होता चला जाता है, इसके फैलाव का कोई रुकाव नहीं है ।
हम जो पहला कदम उठाते हैं वह बीज बन जाता है और अन्तिम फल उसको सहज परिणति है । लेकिन हम बीज जहर के बो देते हैं, इस आशा में कि फल अमृत के होंगे । वे कभी अमृत के नहीं होते। बार-बार हमने यह अनुभव किया है । निरन्तर प्रतिपक हमने यह जाना है कि जो बीज बोए थे, वही फल आ गए । लेकिन हम अपने को धोखा देने में कुशल हैं और जब फल आते हैं तो हम कहते हैं : जरूर कहीं कोई भूल हो गई है। जरूर परिस्थितियाँ अनुकूल न थीं । हवाएं ठीक न थीं। सूरज वक्त पर न निकला, वर्षा ठीक समय वर न हुई, ठीक समय पर खाद नहीं डाला गया । इसलिए फल कड़ने आ गए।
हम दूसरी सब चीजों पर दोष देते हैं । लेकिन हम एक चीज को छोड़ जाते हैं कि बीज जहरीला था । और मजे की बात यह है कि अगर वर्षा ठीक समय पर न हुई हो, अनुकूल परिस्थिति न मिली हो, माली ने ठीक वक्त पर खाद न दिया हो, सूरज न निकला हो तो हो सकता है कि फल जितना बड़ा हो सकता था, उतना बड़ा न हुआ हो। हो सकता है कि जितना जहरीला फल मिला वह छोटा ही रहा हो। इसे थोड़ा समझना चाहिए। जितना दु.ख हमें मिलता है, आम तौर से हम कह देते हैं कि यह परिस्थितियों के ऊपर निर्भर है। यह परिस्थितियाँ हमें दुःख दे रही है। मैं ठो ठीक हूँ लेकिन मित्र, पत्नी, पिता, पति, संसार, परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं। ऐसे हम बीज को बचा रहे है। मैंने जो किया वह तो ठीक है, लेकिन साथ अनुकूल न मिला। हवाएं उल्टी